रवीन्द्र साहित्य भाग 16 | Ravindar Sahitya Bhag 16
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धृतराष्ट्र--
गान्धारी--
गान्धासेसा आवेदन : काव्य
कोपो कृपाणे पदी अचल दो सोती रहीं
लुप्त वज़-नि भेपित विदुत-री 1 महाराज,
सुनो मदाराज, मेरी विनय विनम्र आज,
दूर करो जननीकी ज्जा ग्लानि, लजानत
वीरताके धमैका उद्धार करो, मर्माइत
विकल सतीत्वके दो आंसू पो, अवनत
झुचि न्याय-वर्मृकी प्रतिष्ठा करो, तेण - वत्
त्याग दो दुर्योधनको !
पश्चात्ताप - तापसे जो
जजर हदय स्वत, उसपर करती दो
चोट व्यथे, रानी तुम ।
सौ-गुनी क्या मु, नाय,
होती नहीं वेदना दै 2 दण्डितके किन्तु साथ
एकर-सा आघात पाके जव दण्डदाता रोता
तभी, प्रभु, वह सष्वा सर्वेत्करट न्याय दोत्ता ।
पाता नदीं जिसके किए है न्यथा प्राण॒ - मन,
उसे दण्ड देना बलवानका है उत्पीढ़न ।
पुत्रको जो दण्ड-पीडा देनेमें हो असमथ,
वृह किसी-ओौरको न देना कभी भूल व्यथै ।
पुत्र जो ठम्दारा नदी, उसके क्या पिता नही *
मदा-अपराधी होंगे उसके निकट, कहीं
न्यायाधीश उसके जोदोगे1 सुनती दू यद,
विखव-विधाताकी हम सभी दँ सन्तान, वद
नारायण पुत्रोंका विचार करता है स्थिर,
अपने दी हाथों व्यथा देके व्यथा पाता फिर
साथ-साथ, अन्यथा नदीं है अधिकारी वद
न्याय करनेका कमी । मै द्र मूढ नारी, यद्
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