वर्धमान रूपायन | Vardhman Rupayan
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ सामूहिक नृत्य-गीत |
सुरमुर हुए कत्पवृक्ष
सुर्य-चन्द्र चमके
गुध्र नील नभम
नव ताराग्रह् दमे --
पवत के रजत-शिखर
जाये धरा व्ररन,
डोल उठ सागर
गतिशील हुए झरने ।
चंचल समीर-संग
आगभा इन्द्रघनुपों को
सतरंगी सरसी ।
पहना हरीतिमा ने
फलों का परिधान,
चिड़ियों का कलरव
पवेरओं का मोदगान
गूंज उठा सुप्टिनाद
नव साहस भरने ।
पादवं-स्वर : पुरुपार्य सजग साकार हुआ
जड़ में रस का संचार हुआ
पर चकित खड़ा मानव मतिश्रम
क्या रुप धरेगा जीवन-क्रम ! की
[ऋषभनाथ का प्रवेण । साथ में भरत (पत्र )' हि बाहुबली ं ॥ पु )
मारीचि (प्रपीत्र ), ब्राह्मी (पुवी ) / सुर (पतौ)
पाए्व-स्वर : एते में प्रकटे ऋपभनाध
वे आदि पुरुप, 'कुतयुग' के मनु:
मानव का भय, मणय टये
आये कर में ले प्रना-घनु !
ऋषम : लो ! विषय व्यवस्था सार-शूत
है कर्मठ मानव ब्रह्म च्य ।
जीवन यापन के छद् मान
जन बाग सहयोगी उत्पादन |
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