मानक हिन्दी कोश भाग - 5 | Manak Hindi Kosh Bhag - 5
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
52 MB
कुल पष्ठ :
692
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामचन्द्र वर्म्मा - Ramachandra Varmma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| |
मे मकर निम्नलिखित अथं देना है। (क) तुल्य, समान । जैसे--
चद्रवत्। (खं) के अनुसार, जैसे--विधिवत्।
बतस--पु० [स० अब/ तस् (अलकृत करना) घन्, अव के अकार का
लोप ] -अवतस ।
बत--अश्प० [सि० बिन (सम्यक भक्ति करना ]+ क्त, नलोप] १ खेद ।
२. अपुकम्पा। ३ मनौष। ४. विस्मय आदि का बोधक
दाब्द ।
वतन--ु०[अ०] १. जन्ममूमि। मल वासस्थान) ३ स्वदेश ।
बतनी--नि०[अ०] १. वनन सबधी। २. एक हौ वतन मे होनेवाला।
३. स्वदेशी ।
पु० किस, की दृष्टि से उसी के देश का दूसरा निवासी ।
व गोनना --अ०[म० त्यतौत-हि० ना (प्रत्य०) ] बीतना। गुजरना ।
उदा०--अवधि वतीती अ्जू न आये।--मीराँ।
स० ब्रिताना। गुजारना।
बरीरा--गृ०| अ० वनीर ]१ ढग। रौति। प्रथा।
३. टेव। छत ।
बतोका--प्त्री० [स० अव-तीक, ब० स० , अब के अकार का लोप, टाप ]
जिसका गर्भ न्ट हो गया हो।
स्त्री वाँझष स्त्री ।
वत्स--पुऽ[म० \८ वद् (बोलना) | रा] १. गाय का कच्चा) बदछडा।
२. छराटा बच्चा। शिशु । ३. कस का एक अनुचर। ४. इन्द्र जौ।
५, छती । उर। ६ एकं प्राचीन देश ।
यत्सक---पू० [स वत्य । केन् | [स्व्री° अल्पा० वत्सिका] १ पुष्प करमीस।
२. इन्द्र जौ! ३ कुटज। निर्ग डी।
षर्ततर--१०[स० वत्स । तरपू | [स्त्री बत्सतरी] ऐसा जवान बछड़ा
जो जाता न गया हो। दोहन ।
वतततरो--स्त्री° [म० वत्यनस< ।डीर्] एमी बछिया जो सीने बषे या
उससे कम की हो!
वत्सनाभ--्० [स० वरत्म+^नम (हिसा) ¡अण् | एके प्रक्रार का जहरीला
पौधा । बछनाग ।
बत्सर--पु० |स० ९ विस (निवास करना) | सरन्, सरय त | बारह
महीनो का समय । वर्ष। साल ।
बत्सल--वि० [म० वत्म {लच् | बच्चो विभेषत अपने व्रच्चं से अनुराग
रखनेवाला। बच्चा से स्नेह करनेवाला।
पुर वात्सत्य रग।
बत्सायुर--पु० |स० वर्स-असुर, मध्य० स०] एक अमूर् जिसका वध
श्रीकृष्ण ने किया था।
वस्सिमा (मन्) -- न्त्री [स० वन्स+-इमनिच् | बचपन । बाल्यावस्था।
बरतो (स्तिन् )--वि० [स० वत्स ।-इनि] जिसके बहुत मे बच्चे हो।
पु० विष्णु |
बत्सोथ---वि० [स० वत्स--छ-ईय] वत्स-सबंधी ।
पु० अहीर। ग्वाला।
कप्य --स्त्री ०~-वरतु (चीज) ।
वदतो--स्त्रौ ० | सं०\८वद् (कहना) 1 क्षि--अन्त । डीष् ] कही हई बान ।
कथन ।
भर
२. चाल-ढातठ ।
~ ~~~ ---- बन
वधुका
(समासान)
बद---वि० [सि० पुर्वपद वे साथ आने पर] बोलनेवाला ।
जेसे--प्रियवद ।
बचतोग्याघात--पु० [सन अछक् ] तक मे कथन सबधी एक दोष, जो वहाँ
माना जाता है. जहाँ पहले कार्ट बात कर कर फिर ऐसी वत की
जाती है जो उस पहली बात के विरुद्ध होती है ।
बदन--पु० [स०९/ बद (बहना ) । स्पूटू--अन| १ कोई बात कहने की
क्रिया या भाव। कहना। बोलना । २ मुँह । मुख । है. किसी
चीज के आगे या सामन का भाग ।
ववर--पु ° -=वदर (चैर) ।
वबान्य---वि०[स०]१ वाग्मी। २ बात रो संतुष्ट करनेवाला ।
बदाल--पु० [स० «विद ! के भेजे वद“ अर् (पूर्ण होना) ! अचू]
१. पाठीन मत्स्य। पहिना सछली । ८. आयत। भेंवर ।
बबि--अव्य० [सं० +/वद ' इन] चाद सास कैष्प्ण पा मे। वीमे)
पु० कृष्ण पक्ष ।
वदितब्य--वि ० | सं०\८ वद् (कटना) + नन्प] कर जानें में. योग्य । जो
कहा जा सकें ।
बदी--प० दे० विदि' (रण पक्ष) ।
बदीतना |---अ०, ग०- बतीतसा |
बढुसना--स० [स० विदृषण |]? दप मढना। २ आरोप करना ।
३ भला-बुरा कहना । ग्वरी-वतटों सनाना ।
बद्य-वि०[ग०\द् | यतू [१ कहने योग्य । ४ अनिदय
पु०१. कथन । सोते ४. ' रणपक्ष । वदी।
बच--पु०ुस० ८ हत् (हिमा) +अप्, वधाद] १, अस्त्र-दस्त्रमे की
जानेवादी ठन्या। २ प्चज। वन्या कर्मा। ३ जान-वृह्नकर तथा
क्रिमौ उद्त्यसे का जानैवाली किरी कौ हन्या।
वथक-९[९०८ हन् | क्युन--अक, वधदेश ] १, घातक । हमक ।
२. व्याध। ३ मृद्यु। ४ द० वधक ।
बि० वध करनेवाला ।
बचजीवी (विन )--पु० | स० वध, जीवू (जीना) | णिनि] वह जो औरों
का बध करकं जीविका निर्वाह करता हो ।
वबबत्--पु० सि० हनु अनु, वधादेश] वध करने को उपकरण । अस्त्र-
शरव्र ।
वधना--अ० [म वदन] बना । उन्न करना।
रा० [सं० बच ] अस्त आदि की सहायता से किसी को जान से सार डालना ।
वब-भूसि--स्नी ० [स० प० तर ] बह स्थान जटाँ मनुष्या, पणुओ आदि का
नध किया जाता ठो।
बचामण*--पुः बचावा !
बचालय--पु० [सं० वन-भाव्य, प० त०] वह रथान जलं पर मात प्राप्त
करने के उद्देश्य से पशुओं का वध किया जाता है। बूनदखाना। (स्ला-
ठर हाउस
बधिक[---वि० -यधिफ।
वधित्र-ु५[स० \८ हन् इत्र, वभःदेश] १. कामदेव। २. कामासतित ।
वधिर--धि०[म० विर | बहटग।
बचु--स्त्री० तव् ।
चधुका--स्जी० [सं० वधु ।केन् + टाप्, म्व] वधू ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...