कविता - कौमुदी भाग - 1 | Kavita Kaumudi

Kavita Kaumudi by रामनरेश त्रिपाठी - Ramnaresh Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रस के सहायक छंद भी हे । मंदाक्रान्ता, द्रतविलम्बित, शिखरिणी और मालिनी छंद में श् जार, शांत श्रौर करुण रस अधिक मनोहर हो जाते ह । भुजङ्क प्रयात, वंशस्थ ग्रौर शाद लविक्रीड़ित में वीर, रौद्र श्रौर भयानक रस विशेष प्रभावोत्पादक हो जाते हं । हिन्दी छन्दो मे सवेया श्रौर बरवे में श् जार, करुण और शांत रस; छप्पय में वीर, रोद्र श्र भयानक रस; घनाक्ष री, दोहा, चोपाई और सोरठा में प्राय: सभी रस उद्दीप्त होते हें । सवया श्रौर बरवें में वीररस का काव्य नीरस हो जायगा । काव्य में विरोधी श्रौर सहायक रसों का भी ध्यान रखना चाहिये । वीर या रौद्ररस के वर्णन में शव ज्ार, होस्य और करुण रस की उपस्थिति से रस की सिद्धिनहींहो सक्ती । हास्यरस से श्रृङ्खाररस वृद्धिपाता ह, पर वीभत्स, भयानक ग्रौर करुण रस से उसकी सिद्धिम बाधा पहुंचती है । हास्यरस करुणरस का घातक है। कवि ही नहीं, श्रच्छे वक्ता मी रसो के दात्रद्यों श्रौर मित्रों की जानकारी से श्रपने विषय को बहुत प्रभावोत्पादक बना लेते हैं । भ्रागे के कोष्ठक में यह विषय श्रधिक स्पष्ट कर दिया जाता है-- संख्या रस. रस के मित्र रस के शत्रू १ ण्रद्धार, हास्य, अद्भूत । करणि, वीभत्स, रौद्र, वीर, भयानक । २ हास्य, श्यद्कार+ग्रदभूत । भयानके, करुण, वीर । ३ श्रदूभुत, भयानक । रौद्र । ४ दांत, करुण । वीर, श्यृद्खार, रौद्र, हास्य, भयानक । ५ रौद्र, भयानक । हास्य, शव जार, श्रद्‌भृत। ६ वीर, रोद्र। शांत, श्व ज्ार । ७ करुण, दांत । हास्य, शङ्कार) ८ भयानकः, श्रद्‌भुत,रोद्र,वीर। शृद्खार, हास्य, शांत ९ वीभत्स । ~+ शृङ्गार । कवि कौन दहं ? कवि सृष्टि के सौन्दये का ममंज्ञ है । वह एक ऐसा यन्त्र ह; जिसके द्वारा सृष्टि का सौन्दयं देखा जाता ह । कवि सौन्दयं




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