महिलाओं से | Mahilaon Se

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डे श्वातिर दी श्रतिरंजन करने या श्रतिशयोक्ति से काम लेने से बाज श्रायें। तथापि इस पत्र में जिस घटना का उल्लेख किया गया है वेसी घटना हिन्दू समाज के लिए सवथा श्साधारण नहीं हैं। हिन्दू संस्कृति ने स््री को पति की श्रत्यधघिक गुलाम बनाकर उसे पति के सवथा श्राधौन रखकर बड़ी भारी भूल की है। इसके कारण पति कभी कभी श्रपने अधिकार का दुष्प योग करते हैं श्रौर पशुवत व्यवद्दार करने पर उतारू हो जाते हैं। इस तरह के श्रतिचार का उपाय कानून का श्राश्रय लेने में नददीं, बटिकि विवाहिता खियों को सच्चे अ्रथ में सुशिक्षित बनाने आर पतियों के शझ्रमानुषी श्रत्याचार के विर्द्ध लोकमत जाणत करने में है । प्रस्तुत मामले में जिस उपाय से काम लेना चाहिए वह श्रत्यन्त सरल दै । इस संकट अस्त बहन के दुख को देखकर रोने या अपने लाचारी का अनुभव करने के बजाय उसके भाई श्रौर दूसरे रिश्तेदारों को चाहिए कि वे उसके रक्ता करं । उसे यह समाव, तथा विश्वास दिलावे कि एक पापी दुराचारो पतिको खुशामद करना या उसकी संगति की श्राशा रखना उसका कतव्य नहीं है। यहतो स्पष्ट ही है उसका पति उसकी जरा भा चिन्ता नहीं रखता-तनिक भी पवां नदीं करता | श्रतप्व कानूनी बंधन को तोड़े बिना ही वह श्रपफने पति से अलप रह सकती है श्रौर श्रपने श्राप यद श्रनुभव कर सकती है कि उसका ब्याह कभी दुश्रा ही नहीं श्रवश्य दी एक हिन्दू पतली केलिए, जो तलाक नहीं दे सकती इस सम्बन्घ में कानून की रू से भी दो मांग खुले हैं, एक तो मारपीट करने के कारण पति को सजा दिलाने का श्रौर दुसरा उससे जीविका के लिए. श्राजीवन सहायता पाने का, लेकिन श्रनुभव से मुके पता चला है किश्रगर सवदा नीतौ बहुषा तो श्रवश्य ही यष उपाय निर्थंकसेभी बुरा सिद्ध हुआ हे । इसके




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