भारतीय संस्कृति के उपादान | Bharatiy Sanskriti Ke Upaadaan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
243
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डी॰ एन॰ मजूमदार - D. N. Majumadar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रजाति भोर संस्कृति ३
यदि व्यक्तियों के एक समूह को समान शारीरिक लक्षणों के आधार पर अन्य समूह
से प्रथक पटचाना जा सके तो चाहे इस जैविकीयसमूह के सदस्य कितने भी विखरे क्यो
न हो, वे एकं प्रजाति हैं। प्रजातीय अन्तर वातावरण के प्रभावों से अप्रभावित विशेष
भानुवंरिक गुणां (प्ल 1147 8115) पर आधारित होना चाहिए ।
कठिनाइयों से घिरी आज की दुनिया मं अगणित समस्यायें हैं जो इमारे जीवन
और हमारे सामाजिक सम्बन्धों को विषम बना देती हैं। हमारे यहाँ विचारधाराओं, राष्टों,
दलों के भीतर और बाहर संघर्ष है; प्रजातीय और साम्प्रदायिक पूर्वाग्रह (1९ एत1८65) और
बर्ण-भेढ हैं। जत्र तक कि यह केवल व्यक्तिगत सम्बन्धो को निर्धारित करते हैं इमारे
लिए चिन्ता का विशेष कारण नहीं है, किन्त ज सओपनिवेशीकरण (0०121590),
प्रवास (€1111्21101)), प्रथर्करण (ऽ€्ा€22 ०) या बस्तियों के सीमा-निधारण
जैसी महत्वपूर्ण वैज्ञानिक समस्याएँ: संकी्ण सूचनाओं द्वार निर्णीत होती है, उस समय
यह आवश्यक हो जाता है कि वैज्ञानिक आगे आए ओर जनता को अपने क्षेत्र से
सम्बद्ध समस्याओं के गरे मं, विशेष कर जवकि उन्हें राजनीति के स्तर पर ले आया
गया दो ओर गम बहस का विषय बना दिया गया द्ये, वायं ओर समभे । इसके
अलावा भी, आनेवाली पीढ़ी के लिए मानव आनवेशिकता (77ला){41८८) की
समस्यायें इतनी महत्त्वपूर्ण हैं कि यह स्वाभाविक ही हे कि जनता उनमें अभिरुचि ले।
विना प्रजातीय समस्या के ज्ञान के आधुनिक अनुवंश-विद्या (€<) के
किसी भी विवरण की उपयोगिता सर्वथा अपण है । इसीलिए. जनसंख्या में प्रजातियां
ओर प्रजातीय त्वां का अध्ययन आवश्यक हो गया है।
मापो के लिए सवमान्य प्रविधियों (16०7५०९७) के अभाव ओर मनुष्य के विभिन्न
शारीरिक गुणों के प्रजातीय महत्व के ज्ञान के अभाव के कारण ही प्रजाति-वैज्ञा निकों
(11101081915) ने वर्गीकरण के लिए विभिन्न योजनाएं प्रस्तुत की है। लिनेमस सरं
कुवयि ने मानव समूह को तीन प्रजातियां मं रीय है। हीकेलने १८७३ ई. में
१२ प्रजातियों की स्थापना की, किन्तु १८४८ ई. में उन्होंने इनकी संख्या ३४ तक बढ़ा दी।
डेनिकर ने १३ प्रजातियों और ३० उप प्रजातियाँ (50७ 18065) ठदरायीं। सर आर्थर
कीथ ने त्वचा के श्वेत, काले, पीले और भूरे रंगों के आधार पर एक चतुवर्गीकरण
प्रस्तुत करके दमारे कायं को सरल बना दिया ओर इस मिन्नता का मूल उन्दने ग्रन्थयो
(0196४) की क्रिया में हूँढ़ा। फ़ैंन आइक्सटेड और ऑएगन फिशर यूरोपिड,
निप्रिड और मंगालिड तीन प्रजातियों को मानते हैं। पहले लेखक ने इन्हें १८
उप प्रजातियों में विभाजित किया है। ये अधिकाद योजनाएं अंशतः शरीर स्वना के
गुणों (१1 0छ0010ट्टांट४1 1159) और अंशतः भौगोलिक स्थिति पर आधारित हैं।
कुछ वर्गीकरण विवरणात्मक लक्षणों पर आधारित हैं। डक्वथ ने कापालिक परिमिति
(कएधा० वप), जबड़ों के उभार (70081115) ओर कपाल के समावेश
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