सायरन और सजगता | Sayran Aur Sajagta

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Sayran Aur Sajagta by भूरसिंह निर्वाण - Bhoorsingh Nirvaan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९१८१९८१८ ११८०८१८६०० १०८०५ ६५८५५८ प्ाक्कथन तापरन घोर सजगता' थी भूरसिंह निर्वाणा की काव्य कृति है श्री निवास जी की कविताएँ में झपने बचपन से सुन रहा हूँ । थी निर्वाणं का व्यक्तित्व शुद्ध भावना से श्रोत प्रोत व्यक्तित्व है श्रन उनकी कविता में सीघा वह व्यक्त होता है जो भावनात्मक प्रतिक्रिया के श्राधार वनाता है 1 उनकी कविता मे बौद्धिक विलास को कोई स्थान नही है । जगहं जगह साधारण श्रादमी कै महावर में घुटीला व्यम्य मौ इन कविताभ्नो का भ्रपना विशेप गुण है! प्राज जव कविगण प्रास्या श्रौर श्रनास्था के वीच विसो भ्रनवस्थासे उवरने वी कोशिश में लगे है, ४८ वप से ऊपर उम्र प्राप्त श्री निर्वाण श्रदभ्य साहस श्रौर वीरता के गात उसी सहज भाषा मे गा लेते हैं यह कम नही है । “देश के नौनिहालो के प्रति कविता हमारी नौजवान पोढ़ी के लिए श्रत्यत प्रं रणास्पद रै, श्री पिर्वाण हमारे प्रात के सव श्री उस्ताद, सुमनेश जोशी, गणणपत्तिच द्र भण्डारी धादि के समय के कवि हैं। वे उस समय भी सहज श्रौर मोहक होकर ग्रपना कविता पाठ उसौ जोश श्रौर साहस से करते थे जसा भ्राज करते है । सच तो यह है कि श्री निर्वाण शुद्ध रूप से हृदय ही हृदय हैं । जहाँ हिंदी को कविता कई वादों के घेरे में धूमती रही है श्री निर्वाण ने श्रपनी कविता क्रो श्रपने हृदय प्रौर सीवैप्तादे श्रनुभवो रौर व्यग्यी से वाहर नही जाने दिया है । राजस्थान से श्री निर्वाण को प्रतीम मोह है। उनके 'दूठा वलि दषा” मे यही, मोह्‌ व्यक्त हुमा है। मरू प्रदेश वे घीच खड़े दूठो से मरू प्रदेश का स्वरूप हृदयगम कर श्री निर्वाण ने रचना की है, यह आज भी सच है। म श्रा भूरसिहजी निर्वाणा के कॉब्य सग्रहू * सायरन श्रौर सजगत्ता की सफलता की कामना करते हुए बाः हूं कि जनता इस सम्रह का हृदय से झादर करेगी । दिनाक १५-१२-०१ तारा प्रकाश जोशी १०.००९ १८०र ०९०८६ ५६५८१४६ [ १३




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