नटी की पूजा | Nati Kii Pujaa

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भगवतीप्रसाद चंदोला - Bhagavatiprasad Chandela

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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अकेले मेंने ही अविचल निष्टा से भगवान्‌ तथागत को इसी उद्यान के अशोक तले बिठलाकर सबको धर्मत्व खुनवाया ।. निठ॒र, अछतज्ञ, अन्त में मुभीको यह पुरस्कार ! जो रानियां विद्धेष से जटी थी, मेरे भोजन ` में विष मिलाया जिन्होंने, उनका तो कुछ भी नहीं बिगड़ा, उनके बेटे तो राज भोग रहे हैं । मिज्ुणो । दुनिया के भाव से धमे का मोर नहीं आँका जाता महारानी । सोने की कीमत और प्रकाश की कीमत क्या एक है ? छोकेशरी । जिस दिन कुमार अजातशत्रु ने देवदत्त के सामने आत्मसमपण किया था, मैं निर्बोध उस दिन हँसी थी। सोचती थी कि फूटी डॉगी में बैठकर ये लोग समुद्र पार होना चाहते हैं । देचदत्त के जोर पर, पिता के रहते हुए भी, राजा बन बेठूंगा, यह थी उनको असिलाषा ।. मैंने निभंय और सगवे कहा था, दवदत्त से भौ जसि गुरु के पुण्य का जोर अधिक दै, उन्दीकी छपा से अमंगल रर जाएगा । इतना द्द मेरा विश्वास था | भगवान्‌ बुद्ध को- शाक्यसिह को-लछाकर मैने उनके द्वारा आयंपुत्र को आशीर्वाद दिलाया । तब भी जीत हुई किसकी ? भिद्धणी। तुम्हारी ही। उस जीत को भीतर से बाहर न लोटा देना ।




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