भूदान - गंगा | Bhoodan - Ganga
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)+. अ्टिसा के तीन थं १७
दम न किसीसे डरेंगे, त किसीको- डरायेंगे
~
हिंसा में विश्वास 'रंखनेवाले सदा ' मयमीर्टि रहते रै । -वे शरीर कौ दी आत्मां
समझते हैं । शरीर को-कोई मारे या पीटे, तो उसकी करण आ ' जाते है | ,त्वाप
जय बच्चो को पीटता या गुरु जय दिप्य की ताड़ना करता है, तो वद्द उसे
हिंतावश होने की ताढीम देता है। यह सच हू कि बाप वेंटे को प्रीटता. है, तो
उसकी भलाई के छिएं पीटता है; लेकिन उससे वहूं उसे.डंरपोक ही बमाता है ।
वह कहता दै कि तेरे शरीर को कोई पीडा दे, तो उघकी शरण मे चले जाञो । य्
तालीम मयभीत बनाती है । अगर भयभीत बनाकर कोई अच्छ कामो जीय,
तो उस्मे कोई सार नही; निर्मय होकर दी सदा आगे. वदनां चादिए । अमर. हम
अपनी अहिंसा की दक्ति बढ़ाना चाहते हैं, तो यह न्रत लेना होगा कि इस ने तो
किसीसे डरेंगे और न किसीको डरायेगे ही ।” जो दूसरों को डरायेगा, धंमकायेगा,
वहं खुद भी डरेगा । इसलिए हम दूसरों को डरायेगे नदी और 'न दूसरों, से डरेंगे
ही । हमे शिक्षालय और विद्यालय मे यद्दी तालीम देनी दोगी । गुरु शिष्य से कहेगां
कि तुम्हे कोई डरा-घमकाकर तालीम दे, तो मत मानो । बाप भी वेटे से कह्देगा *
कि कोई धमकाकर या सोटा छेकर पीटता है, तो मत मानों; अगर विचार से
समज्ञाता दो, तो मामो । कोई मारे-पीटे या कत्ल कर दे, तो मत मानो । कारण
तुम दारीर नद्दी, दारीर से भिन्न आत्मा हो। झरीर तो मरनेवाला ही है। जो
दूसरों को दवा पिल्मता है, उस डॉक्टर का भी शरीर उसे छोड़ ही जाता है।
इसलिए दारीर की आसक्ति मत रखो । आस्मा की भूमिका में रहो । सासझ,
कोई मुझे मार नद्दीं सकता; पीट नहीं रुकंता, दबा नहीं सकता या धमका नहीं
सकता--यदद जो समझेगा, वहीं दूसरों को भी न घमकायेगा, न दबायेगा और न
डरायेगा ही । इसीका नाम 'अदिसाः है ।
निर्भपता दो प्रकार की होती है: (१) दूसरे को न पटना, न डराना और
( २ ) दूसरे से न डरना । अग्रेजों के राज्य में हम इतने डर गये थे कि साइय का नाम
छेमे से ही कौपते थे । पर इधर अप्रेजों से डरते थे, ठो उधर दरिजनों को दभाति
भी थे | एक शोर खुद सिर झुकाते थे, तो दूसरी ओर दूसरों से झुकवाते थे ¦ इर्
के २
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