लेख लतिका | Lekh Latika
श्रेणी : निबंध / Essay, शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महात्मा गांधी की आत्मकथा ६
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पर उस का कोई असर न हुआ । मुझे दूसरे लड़कों: से नकल
करना कभी न आया | „ 6, 9
ऐसा होते हुए भी मास्टर साहब के प्रति मेरा आदर कभी
न.घटा ।.बूढ़ों के दोष न देखने का गुण सुम में स्वाभाविक
था । बाद को तो इन मास्टर साहब के दूसरे दोष भी मेरी
नजर सें आये । फिर भी उनके प्रति मेरा आदर उ्यी-का-त्यों
कायम रहा | में इतना जानता था कि बड़े-वूढ़ों की आज्ञा का
पालन करना चाहिए, जो वे कहें करना चाहिए, वे जो. कुछ
करे, उसका काजी> हमें न बनना चादहिए। वि
इसी बीच दूसरी दो घटनाएँ हुई, जो मुझे सदा याद रही
हैं । मामूली तौर पर सुभे कोस की पुस्तकों के झलावा छुछ
भी पढ़ने का शौक न था। सवक पूरा करना चाहिए, डाट
सही नहीं जाती थी, मास्टर से छल-कपट करना नहीं था,
इन कारणों से में सबक पढ़ता, पर सन न लगा करता । इससे
सवक बहुत वार कचा रह् जाता । एेसी हालत में दूसरी पुस्तक
पढ़ने को जी कैसे चाहता १ परन्तु पिताजी की खरीदी एक
पुस्तक श्रवण-पितृ-भक्तिः नाटकं पर मेरी नजर पड़ी) इसे
पढ़ने को दिल्ल चाहा । वड़े अनुराग और चाव से मैंने उसे
पढ़ा । इन्हीं दिनों काठ के बक््स में शीशों से तस्वीर दिखाने
चाले भी फिरा करते । उनमें मेंने श्रवण का अपने माता-पिता
को कांवर* में वेठा कर यात्रा. के लिए लेजाने चाला चित्र देखा ।
दोन चीजों का मुभ पर गहरा असर पड़ा] मनसे श्रवण के
समान होने के विचार उठते । श्रवण की -खत्यु पर उसके मता-
पितता का विलाप सुभे अव भी याद दै। उस ललित छन्दको
मेनि वजानां सीख लिया धा । सुकरे वाजा सीखने का शौक था
और पिता जी ने एक वाजा ला थी दिया था | `
इसी समय कोई नाटक-कंपनी आई और
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