लेख लतिका | Lekh Latika

Lekh Latika by विभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महात्मा गांधी की आत्मकथा ६ ~~~ ~^ ~~ पर उस का कोई असर न हुआ । मुझे दूसरे लड़कों: से नकल करना कभी न आया | „ 6, 9 ऐसा होते हुए भी मास्टर साहब के प्रति मेरा आदर कभी न.घटा ।.बूढ़ों के दोष न देखने का गुण सुम में स्वाभाविक था । बाद को तो इन मास्टर साहब के दूसरे दोष भी मेरी नजर सें आये । फिर भी उनके प्रति मेरा आदर उ्यी-का-त्यों कायम रहा | में इतना जानता था कि बड़े-वूढ़ों की आज्ञा का पालन करना चाहिए, जो वे कहें करना चाहिए, वे जो. कुछ करे, उसका काजी> हमें न बनना चादहिए। वि इसी बीच दूसरी दो घटनाएँ हुई, जो मुझे सदा याद रही हैं । मामूली तौर पर सुभे कोस की पुस्तकों के झलावा छुछ भी पढ़ने का शौक न था। सवक पूरा करना चाहिए, डाट सही नहीं जाती थी, मास्टर से छल-कपट करना नहीं था, इन कारणों से में सबक पढ़ता, पर सन न लगा करता । इससे सवक बहुत वार कचा रह्‌ जाता । एेसी हालत में दूसरी पुस्तक पढ़ने को जी कैसे चाहता १ परन्तु पिताजी की खरीदी एक पुस्तक श्रवण-पितृ-भक्तिः नाटकं पर मेरी नजर पड़ी) इसे पढ़ने को दिल्ल चाहा । वड़े अनुराग और चाव से मैंने उसे पढ़ा । इन्हीं दिनों काठ के बक्‍्स में शीशों से तस्वीर दिखाने चाले भी फिरा करते । उनमें मेंने श्रवण का अपने माता-पिता को कांवर* में वेठा कर यात्रा. के लिए लेजाने चाला चित्र देखा । दोन चीजों का मुभ पर गहरा असर पड़ा] मनसे श्रवण के समान होने के विचार उठते । श्रवण की -खत्यु पर उसके मता- पितता का विलाप सुभे अव भी याद दै। उस ललित छन्दको मेनि वजानां सीख लिया धा । सुकरे वाजा सीखने का शौक था और पिता जी ने एक वाजा ला थी दिया था | ` इसी समय कोई नाटक-कंपनी आई और




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