प्रसाद के तीन ऐतिहासिक नाटक | Prasad Ke Teen Aitihasik Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रसादं की नाव्य-कुला ] [३
वास्तविक रूप का हम पता नहीं । मद्दाभारत आर रामायणु-कातत में हम
दो एक नाटकों के नाम मिलते हैं, परन्दु उन नाटकों की प्रतियाँ अभी
तक प्राप्न सही हुई । नाटकों का ेतिदापिक जान हम व्याकररणाचा्या
के समय से मिलता है । पाशिनी के कथानुसार उनके बहुत पहले दी
भारतवर्ष मे नाट्य साहित्य पर लक्षण मरन्थ रादि बन चुके थे । रतः
यह स्वय-सिद्ध है कि च्याकरणु-काल तक यहाँ पर नाटकों का इतना
प्रचार दो गया था कि लोगों ने उनके विपय सें नियमादि बनाना प्रारभ
दर दिया था । पाणिनी का समय लगभग ३०० ई० पू० माना जाता
है, इसलिए भारतवर्ष में ईसा के कई शताब्दी पूवं से ही नाटक रचना
होने लगी थी । कालिदास का समय जो पहले नाटकों का ब्रालकाल
समभा जाता था, वास्तव में नाटकों के विकास का मध्य युग था । यद्यपि
यह सत्य हैकि कालिदास के पूर्व के नाटकों का जान न होने से नाव्य
साहित्य का अध्ययन कालिदास के ही समय मे प्रारभ होता है ।
कालिदास ने मालविकाग्निमित्र, विक्रमोबशी तथा शकुन्तला
तीन बहुत हो उत्तम आर विश्वविख्यात नाटक लिखे । शकुन्तला तो
कवि वी झ्मरइति है जो कई भाषाओं मे श्रदुदित भी हो चुकी है।
कालिदास के उपरान्त श्री ह्प ने नागानद श्र रतायली नाटक लिखे
तथा भी शद्रकने मृच्छकटिक नामी एक सुन्दर ग्रौर सर्वा गगणं नायक
लिखा । इनके पश्चात् ८वीं शताब्दी मे महाराज यशोवर्धन के राज-
कदि भवभृति ने नाटकशास्त्रों के नियमों मे विशद्ता श्र सशोधन-सा
परते हए आपने कई उत्तम नाटक लिखे जिनमे उत्तर रामचरित, महा-
बीर-चर्ति थ्ोर मालती माधव विशेष प्रसिद्ध हैं । इन्होंने श्रपने नाटकों
न टकीय सिद्धान्तो का उस्लघन भी यथेष्ट किया | परन्तु कवि की
प्रतिभा ने कहीं भी इनकी कला को नीरस या शक्तिहीन नहीं चनाया |
दीं शताब्दी मे भट्ट ने दौर विशाखदत्त ने सुद्रारानस लाटक
लिन । इनके उपरान्त राजेश्वर ने वालरामायण श्र क टूर जरी की
रचना की ॥
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