मकड़ी का जाला | Makadi Ka Jala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सकडी का जाला १७ र्‌ किन्तु, इतके पूवं कि कथा श्रौगे बढे, श्राप श्रीमरवरोत्तम नारायण नटनागर का परिचय कुछ झऔर सृषक्ष्म रेखाभश्रो मे देखना चाहे { भ्रठारह बरस की उमर मे प्रवेरिका (मैट्रिक ) पास करके, वे इस कार्यालय में क्लकं हौ गए ये । पिता पुरानी सिंधिया रियासत के किसी कस्बे में गिरदावर थे । यहा पर दूर के रिश्ते मे.कोई मामा थे, उन्हीके यहा रहकर मैट्रिक पास किया, श्रौर उन्हीकी सिफारिश से नौकरी भी लग गई । छ-सात साल हो गए उस बात को । क्लकं को जीवन के प्रारम्भ मे कु सधं तो करना ही पडता है; तीनेक वषे तक दफ्तर में लोटन कबूतर रहकर श्री नटनागर ने झाखिर श्रपनी पोजीशन जमा ली, श्र तब से बराबर उन्नति करते हुए श्रब अपने विभाग के प्रमुख लेखक हो गए हैं । साल भर हुमा, दफ्तर के उपनिवेश मे इन्हे रहने को मकान भी मिल गया है । मामा का घर छोड़कर तब से वे यही रहते है । पर यह परिचय तो सभी क्लरकों का हुमा करता है । हमारे नायक नटनागर जी इतने-से परिचय से सतुष्ट होने वाले नही । उनके व्यक्तित्व को प्रतिष्ठित करने के लिए, श्रौर बारीक कलम की श्रावद्यकता है । पहली बात तो, आजकल वे अपना नामं नरवरोत्तम नारायण नटनागर नहीं लिखते । उन्होने उसे सक्षिस कर लिया है मिस्टर एन० एन० नटनागर्‌ 1 हस्ताक्षर भी वे बडे मजे के करते हैं : नामाक्षरो के लिए वे लिखते है “एव और फिर उसपर '३' की सख्या लिख देते हैं, जिसका अथं होता है “एदु-क्यूबिक' यानी एन्‌ की तीन बार श्रावृक्ति; म्रौर पूणं हस्ताक्षरो के लिए लिखते है, “एन-क्यूँबिक श्रटनागर' ! हस्ताक्षरो मे कुछ विशिष्टता चाहिए ही, सो यही उनकी विशिष्टता है । कुछ दोस्त उन्हे कभी-कभी मौज मे “मिस्टर एचु-क्यूबिक' के नाम से पुकार भी लेते है, और ये हसकर उसी नाम से बोल भी लिया करते हैं ।




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