हिन्दीविलास | Hindivilas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(घ) जायसी श्रादि का चेत्र तुलसी की श्रपेक्ता संकुचित है; ओर सूरदास $ उद्गार सरल तथा दन्द्रिय होते हए भी तुलसी के समान आत्म सघषेण की अभिव्यक्ति नदीं करते । इस प्रकार केवल कवित्व ही की दृष्टि से तुलसीदास साहित्याकाश के सूयं ठहरते ह्‌ । २२- तुलसी के उपरान्त रामभक्ति शाखा में कितने ही कवि हुए, जिनमें “भक्तमालः के रचयिता नाभादास तथा प्राणचन्द्‌, हृदयराम, विश्वनाथसिंह और रघुराजसिह आदि के नाम उल्लेख योग्य हैं । ६ मक्तिकाल--कृष्णभाक्ि शाखा २३--मौोलिक महाभारत मे कृष्ण को अवतार का रूप नहीं दिया गया था । गीता में कृष्ण ने ज्ञान तथा विज्ञान की दृष्टि से पते को ब्रह्म बताया था । भागवत पुराण में कृष्ण को पूणोवतार मान लिया गया । काल क्रम से छृष्एभक्ति संप्रदायों में बंट गई । हिन्दी के कृष्णोपासक कवि भिन्न भिन्न संप्रदायो को मानते ये। विद्यापति ओर मीरा निम्बाकं के उस मतको मानते थे जिसमें राधा को कृष्ण की प्रेयसी माना गयाहै। दूसरी ओर सूरदास श्री वल्लम के अनुयायी थे जिनका भक्ति- मार्ग पुष्टि मार्ग के नाम से विख्यात है । २४--वल्लभ के शिष्यों मे सवेप्रथान, हिन्दी के अमर कवि, महात्मा




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