विद्यार्थियों को संदेश | Vidyarthiyon Ko Shandesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विद्याथियों को सलाह ७ बाहर लायेंगी ? या यह दिक्षा ऐसी हूं जो सरकारी कर्मचारी था व्यापारी दफ़्तरों के क्लाक बनाने वाला कारखाना बन गईं है ? जो दिक्षा तुम्हे सिल रही है क्या उसका उद्देद्य' सरकारी विभागों या दसर सहकमों में केवल नौकरी पाना है ? यदि तम्हारी दथिक्षा का यही ध्यंय है, अगर तमन अपन सामने यही लक्ष्य रख छोड़ा है, तो मेरा खयाल ओौर सभे अन्देशा हुं कि कविः नें जिस अदश की कल्पना की है, वह पूरा नहीं होगा। जंसा कि तमने मे शायद कहते सुना हो या पढ़ा हो, मं आधनिक सभ्यता का कट्टर विरोधी हं। सं चाहता दूं कि योरप में जो कुछ आज हो रहा है, उसपर नज़र डालो और यदि तुम इस नतीजे पर पहुंच , चूके हो कि इस समय योरपं आधुनिक सभ्यता क पेरों तले कराह रहा ह, तो तम्हें और तृम्हार साता- पिता 1 को हम! री सातथसि में उस सभ्यता की वक़ल करने से पहले दस बार सोचना पड़ेगा । मंक्ससूलर ने हमें बताया. ह--हमें अपन ही * घ० --जव भारत को स्दराज्यः मिल जायेगा, तब क्षिका का आपका क्या ध्येय होगा? उ० :--चरित्र-निर्माण) मे साहस, बल, सदाचार ओर बड़े लक्ष्य के लिये काम करने .मे आत्मोत्स्गं की चक्ति का विकास करने की कोदिदा करूंगा। यह साक्षरता से ज्यादा सहत्त्वपुण है; किताबी ज्ञान तो उस बड़े उदेश्य का एक साधन सात्र है। १ -रीमेकंं फ़ मेनकादरड (०६२२) : प० १०92-2४ रवीन्द्रनाथ ठाकुर।




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