उत्तर प्रदेश में सभी के लिए शिक्षा कार्यक्रम की संकल्पना ,रणनीतियाँ तथा क्रियान्वयन का विश्लेषणात्मकअध्ययन | Uttar Pradesh Mein Sabhi Ke Liye Shiksha Karykram Ki Sankalpna Rannitiyan Tatha Kriyanvayan Ka Vishleshanatamk Adhyyan

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Book Image : उत्तर प्रदेश में सभी के लिए शिक्षा कार्यक्रम की संकल्पना ,रणनीतियाँ तथा क्रियान्वयन का विश्लेषणात्मकअध्ययन  - Uttar Pradesh Mein Sabhi Ke Liye Shiksha Karykram Ki Sankalpna Rannitiyan Tatha Kriyanvayan Ka Vishleshanatamk Adhyyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यद्यपि प्राथमिक शिक्षा का विस्तार हो रहा था तथापि वह संतोषजनक नहीं था, क्योकि उसके मांग मे अधोलिखित विशेष कठिनादर्यो थी ~ ` भारत की एक अति विशाल जनसंख्या ग्रामं मे निवास करती है। अतः प्राथमिक शिक्षा एक ग्रामीण समस्या हे। नगरों म प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था सरलतापूर्वक की जा सकती है, परन्तु ग्रामो मेँ यह कार्य अति दुष्कर है । ग्रामं के स्कल छोटे होते है । उनके लिये शिक्षक प्राप्त करना कठिन होता है, क्योकि ` शिक्षित व्यक्ति ग्रामीण वातावरण में निवास करना पसन्द नहीं करते हैं। ग्रामीण .. विद्यालयों के निरीक्षण में असुविधा का सामना करना पड़ता है। ग्राम-निवासी अशिक्षित, निर्धन ओर रूढडिवादी है । अतः वे शिक्षा की उपादेयता को नहीं सम्मते हं । इसीलिये वे अपने बच्चों को विद्यालय नहीं भेजना चाहते हँ | फिर बच्चों को शिक्षा देने में उन्हें आर्थिक हानि भी होती है, क्योंकि उन्हें कृषि-कार्य के लिये अन्य व्यक्तियों को रखना पड़ता है| प्रत्येक ग्राम में प्राथमिक विद्यालय नहीं हे । बच्चों के लिये दूसरे गाँव के स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के लिये जाना कठिन होता है, क्योकि प्राकृतिक बाधारये, आवागमन के ` साधनों का अभाव एवं मौसमी बीमारिर्यो उनके मार्गं मे अवरोध डालती है| बहुत से पिछड़े हुए क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ प्राथमिक शिक्षा को प्रोत्साहित नहीं किया गया है। बालकों को अपने माता-पिता के साथ कृषि-कार्य करना पड़ता है। अतः कार्य की ॥ 4 अधिकता हो जाने पर वे विद्यालयों में नियमित रूप से उपस्थित नहीं हो पाते है| जातीय, धार्मिक एवं साम्प्रदायिक भेद-भाव प्राथमिक शिक्षा के विकास में बाधक है। कुछ क्षेत्रों में विभिन्‍न भाषाओं का प्रयोग किया जाता है। अतः वहाँ प्राथमिक शिक्षा की ` . व्यवस्था करना एक दुरूह कार्य हो जाता है। समिति ने कहा कि यद्यपि प्राथमिक विद्यालयों और छात्रों की संख्या में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है, परन्तु इसका यह अभिप्राय नहीं है कि प्राथमिक शिक्षा की प्रगति + हो रही है। कारण यह है कि प्राथमिक शिक्षा मे अपव्यय एवं अवरोधन अत्यधिक है। प्राथमिक शिक्षा पूर्ण होने से पूर्व बालकों को किसी कक्षा में से हटा लेना 'अपव्यय' है । इस . दशा में बालक जो कुछ थोड़ा-बहुत पढ़ना-लिखना सीख लेता है, उसे वह भूल जाता है... ओर निरक्षर हो जाता है। साक्षरता का उद्देश्य तभी पूरा हो सकता है, जब बालक कमसे कम प्राथमिक शिक्षा को पूरा कर लै। अवरोधन' का अर्थ स्पष्ट करते हुए समिति ने लिखा . कि एक बच्चे का एक ही कक्षा में एक वर्ष से अधिक रहना “अवरोधनः है। `




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