महावीर वाणी भाग - 3 | Mahavir Vani Bhag - 3

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Mahavir Vani Bhag - 3  by मा धर्म ज्योति - Ma Dharm Jyoti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ महानीर बानो : ३ { तो महावीर बारह वर्ष तक अपने विचार को काटते हैं, छोड़ते हैं । एक- एक ग्रस्य ~ विचार की एक-एक गांठ खोलते ह । ओर जब विचार की सब गाँठें खुल जाती है, सब बादल खो जाते है - सिफफ़े खाली आकाश रह जाता है स्वयं का - तब अनुभव शुरू होता है । उस अनुभव से जो वाणी प्रगट हुई है, उस महावीर- वाणी पर ही हम विचार करने जा रहे हैं । इसे सोचेंगे आप तो भूल में पड़ जाएँगे ।..' सोचना कम, हृदय को खोलना ज्यादा, ताकि यह ऐसे प्रवेश कर सके भीतर, जसे बीज ज़मीन में प्रवेश कर जाता है जमीन बीज के सम्बन्ध में अगर विचार करने लगें, कि पहले सोच लू, समञ्च लं कि इस बीज को गर्भ देना है कि नहीं देना, तो ज़मीन कुछ भी न सोच पायेगी । क्योकि बीज में फूल प्रगट नहीं है; बीज में कोई वृक्ष भी प्रगट नहीं है । होगा ~ वह सम्भावना है। अभी वास्तविक नही है । अभी सब भविष्य में छिपा है । लेकिन ज़मीन बीज को स्वीकार कर लेती है । बीज टूट जाता है भीतर जाकर । ज़मीन उसे पचा लेती है। बीज मिट जाता है, खो जाता है । और जब बीज खो जाता है बिलकुल और जमीन को पता भी नहीं चलता कि मुझसे अलग कुछ है, तो बीज अकुरित होता है । तब एक नेए जीवन का जन्म होता है, और एक वृक्ष पैदा होता है । महावीर के वचनो को अगर आप सोच-विचार में उलझा लेंगे, तो वे आप के भीतर उस जगह तक नहीं पहुँच पाएंगे, जहाँ हृदय की भूमि है । आप सोचना मत । आप मिफं हूदय की प्राहक भूमि में उनको स्वीकार कर लेना । अगर वे व्यर्थ है, अगर वे निर्जीव है, तो कोई अकुर पैदा न होगा, वीज यूं ही मर जायेगा । अगर वे साथेंक है, अगर अर्थपूर्ण है, अगर उनमें कोई छिपा जीवन है, अगर उनमें छिपी कोई विराट सम्भावना दै, तौ जिस दिन आप भीतर उन्हें पचा लेंगे, हृदय में जब वे मिल कर एक हो जाएगे, और जब आपको याद भी न रहेगा कि वह विचार महावीर का है या आपका, जब यह विचार आपका ही हो जायेगा, आपमें चुलकर एक हो जायेगा, पिघल जायेगा जाकर भोतर ~ तब आपको पता चलेगा कि इस विचार का अर्थ बया हे । क्योकि तभी आपके भीतर इस विचार के माध्यम से एक नये जीवन का जन्म होगा ; एक नई सुगन्ध, एक नया अर्थ, एक नये क्षितिज का उद्घाटन होगा । विचार के साथ हम दो तरह का व्यवहार कर सकते है : एक तो . आलोचक का व्यवहार ~ किं वह्‌ सोचेगा, काटेगा, विष्लेषण करेगा, तकं कृरेगा । आपकी मना नहीं करता । अगर आपको महावीर के साथ आलोचक होना है तो आप हो सकते ह । लेकिन, तब जो महावीर दे सकते है, उससे आप वंचित रह जाएंगे । दूसरा है ग्राहक का, प्रेमी का, भक्त का व्यवहार । भक्तं सोचता नहीं, बह. तविषं , रिष्ट, सिं संवेदनणील होता दै. वह्‌ स्वीकार कर लेता है। वह हृदय में




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