सुपारस बाबू को सप्रेम | Supars Babu Ka Saprem
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
599 MB
कुल पष्ठ :
248
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दो सीँ पर प्रारम्भ मँ तो एक सीट श्रक्षय की रहती थी किन्तु श्रति ¦
शीघ्र श्रव हर बार उछलकर, फुदककर नलिनी उस पर श्राकर
बैठने लगी ।
“दिप-टाप' रहने से कटीं श्रधिक खर्च, प्रतिमास नहीं प्रतिदिन
अक्षय नलिनी से भटक लाता । वह कमीशन नहीं था, न। वह तो
परोपकार का प्रसाद था जो उसे नलिनी श्रौर वीरेन्द्र दोनों से समान
रूप में प्राप्त होता था। होना भी चाहिये, उस बेचारे के कौन से
फार्म चल रहै थे?
श्रौर सुख-दुःख दोनों ही में परमात्मा कभी-कभी सहयोग दे गलता
है, न । वैरिस्टर साहव की मृत्यु“ वह श्राई श्रौर ग्रगले ही मास नई
शशेवरलेट' नलिनी के “पोटिको' मे गनगनाने लगी । शनैः-दानैः टन
श्रीमानुजी का वेंक वैलेंस लाखों से घटकर हजारों श्रौर तब सैंकड़ों पर
इस हेतु पहुंच गया कि श्रक्षय महोदय के पूर्ण सहयोग से उन्हें नित-नूतन
नलिनियों के सहवास श्रौर साहचयं का परमानन्द प्राप्त होने लगा ।
वीरेन्द्र प्रौर नलिनी क “एम्वेसेडर' की जान-पहचान के कुछ ही
मास बाद उसी प्रकार “एम्बेसेडर' में वैठे एक शाम को राजे ने वीरेन्द्र
को सूचना दी कि उसने सुना है कि मिस नलिनी कल से गरायव है ।
“में जान चुका हूं , वीरेन्द्र ने कष्ट के स्वरों में कह डाला ।
“किन्तु इन श्रनेक महीनों मे वैरिस्टर साहब के साहवजादे यह
क्यों न जान पाये कि मिस नलिनी सेठ रामकिशोर की ही एक मात्र,
एकलौती बेटी नहीं हैँ अपितु वे देसे कितने ही सेठों की वैठके प्रावाद
कर चुकी हैं श्र है नई-चावढी को मशहूर जेवुन्निसा को एकलोती
लादली 1
“राजे, क्या चुप नहीं रहोगे ?”
“मई, में तो चुप हूं परन्तु कार के पास जो शगडले' का श्रादमी
खडा चिल्ला रहा रै ।“
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