श्री भागवत दर्शन भाग - 76 | Shri Bhagawat Darshan Bhag - 76
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
223
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ श्र )
भवन में जाकर न्याधीशों की श्रतुमति से समस्त प्रविवक्त्रोकेः
सम्मुख मैने एक भत्यन्त हौ कडा वक्तत्य दिया । मैते का~
मुभे सव जानते है, म यथारक्ति भट नही वोतता.मैकमीज्रिमी
को हिसा के लिये नहीं उमाइता, लगभग ४० वर्ष से मेने मौन
व्रत घारण किया है । मैं इतने दिनो से देश का कार्य कर रहा
हूँ, कई वार जेल गया हूँ किन्तु कमी भी मेरे ऊर लोगों को
मडकाने का वलवा कराने को प्रियो सीं चफाया सया)
किन्तु घाज श्रनशन के पुवे मेरे ऊपर बलवा कराने का श्रभियोग
लगाकर मुके भूठ-मुठ पक्डा गया है। झभियोंग सिद्ध मे होने
पर मु्ते छोड़ दिया गया है । यह तो ऐसे ही हुम्रा किसी के सिर
पर जूती मारकर फिर उससे कह दिया जाय, भूल से जुती मार
दी, भ्रव तुम प्रसन्नता पुर्वरु सपने घर चले जाय । जब मुक्त जेसे
साधक सुप्रप्तिद्ध व्यक्ति के प्रति सरकार का ऐना व्यवहार है,
जिसकी वधानिक रक्षा के लिये सहख्रों वकील झधिवक्ता तत्पर हैं,
तो उन वेचारे घ्रसहाय, निवेल साधनही न साधारण लोगों के ऊपर
तो मनमाने श्रभियोग चलाये जाते होंगे । क्योकि वे झ्रपने बचाव
के लिये वकील नहीं कर सकते । द्रव्य व्यय नहीं कर सकते । इस
प्रकार प्राक्रोश के शब्दों में मे लयमग भाधे घन्टे वोलता रहा ।*
न्यायाधीश चुपचाप शांत भाव से मेरे वक्तव्य को सुनते रहे ।-
उन्होने वोच में एक शन्द भी ने कहा, न मुके टोका दी 1
इसी प्रकार मैं वक्तव्य देकर तुरन्त वहाँ से चल दिया । सर--
कारी भधिवक्ता समारे वकील पर बडे ऋ हृए् प्रोर बोले-
“जब हमने प्रात: ७ बजे ही प्रमियोग उठा लिया था, तो इन्हें
फिर न्यायालय के सम्मुख क्यो उपस्थित किया ? ॥
हमारे वकल ने द्िणणित क्रोध प्रदरित भरते हुए कदा--
“हमे क्ण पता था, कि मापने अभियोग उठा लिया, श्रापने कोई:
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