राजस्थान में किसान एवं आदिवासी आंदोलन | Rajasthan Mein Kisan Evam Adivasi Andolan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उननीसवीं सदी के आदिवासी प्रतिरोध / 11
का मीणा विद्रोह अन्तिम रूप से नियत्रित हो गया था।
मील विद्रोह 1861-1900);
सत्ता पक्ष ने भीलों की समस्याओं का समाधान कर उन्हें सन्तुष्ट करने के स्थान
पर॑ शक्ति से कुचलकर शान्त करने का प्रयास किया। अग्रेजों व स्थानीय राज्यो द्वारा
अपनाई गई दमन की नीति ने भीलो को ओर अशान्त कर दिया था। वर्ष 1861 में उदयपुर
के समीप खैरवाड़ा क्षेत्र मे मील उपद्रवों की घटनाऐ सामने आई । 1863 मे कोटडा के भील
उत्पाती गतिविधियों में सलग्न हो गए, जिसकी जिम्मेदारी मेवाड़ भील कॉर्पस के
कमान्डिग अधिकारी ने उदयपुर राज्य पर सौंपी क्योकि राज्य के प्रशासनिक अधिकारी
भीलों के साथ उचित व्यवहार नहीं कर रहे थे। 1864 में करवड़ परसाद, नठारा एव इनके
समीय की पालो के भील चोरी व डकैती की कार्यवाहियों में सलग्न हो गए थे। अग्रेज
अधिकारियों के अनुसार उदयपुर के पहाडी क्षेत्रों में जिले के हाकिम की उपेक्षा के कारण
स्थिति निरन्तर बिगड़ती जा रही थी | 1866 में मेहता रघुनाथ सिह को मगरा जिले का
हाकिम नियुक्त किया गया था जो एक भ्रष्ट अधिकारी था, उसे 1851 मे जहाजपुर से
इसलिए स्थानान्तरित कर दिया था कि वह वहाँ मीथा विद्योह के लिए जिम्मेदार था।
मेवाड भील कॉर्पस के कमान्डिग अधिकारी ने लिखित शिकायत मे इन आरोपों को
दोहराया था | उसने यह भी शिकायत की थी कि नया हाकिम भीलो पर जुर्माना थोप रहा
है तथा मनमाने तरीके से शक्ति पूर्वक उत्पीडन करते हुए भीलों से दुगना राजस्व वसूल
कर रहा है । इन आधारो पर हाकिम को स्थानान्तरित कर दिया तथा सैनिक कार्यवाही व
शान्तिपूर्वक सम्ञाकर भोल उत्पात को शान्त कर दिया गया था (७ तत्पश्चात् 1867 मेँ
खैरवाडा व डूगरपुर के मध्य देवलपाल के भीलों ने उत्पात आरम्भ कर दिया जिसे मेवाड
भील कोर्पस ने कुचल दिया था।“
1872-75 के दौरान बासवाड़ा में भील विद्रोह की अनेक घटनाएँ घटी ।” इन
विद्रोह के कारण इस प्रकार थे ~ प्रथम 1868 में बासवाडा राज्य व अग्रेजो के मध्य एक
समझौता हुआ जिसके अनुसार अग्रेजों को भीलो को कुचलने की निरकुश शक्तिया प्राप्त
हो गई थी ।” दूसरा अग्रेजों ने भीलो द्वारा राज्य को सत्ता के प्रतीक के रूप मे दिए जाने
वाले बराड़ नामक कर की राशि मे वृद्धि कर दी थी।” बराड के अतिरिक्त भीलो पर
भू-राजरय भी थोप दिया गया था जो भील पूर्व में कभी नहीं देते थे । तीसरा, राज्य ने भीलो
के दमन हेतु मकरानी व विलायती नौकरों (अफगानिस्तान के मुस्लिम पठान) को नियुक्त
किया था। वे भीलो का निर्दयता पूर्वक दमन व उत्पीड़न करते थे । दे भीलों को मारी ब्याज
की दर पर धन उधार देते थे च उनके बच्चो को लिखित मे गिरवी कर लेते थे। ऋण के
भुगतान न होने की स्थिति में वे भीलों से उनके बच्चो को छीनकर लौंडी (महिला दास)
अथवा गुलाम (पुरुष दास) बना लेते थे? चौथा 1868-75 कं दौरान भयानक अकाल नें
भीलो को बेचैन कर दिया था ।” एवं पाचवा गुजरात के पडौसी क्षेत्रों के भील व नायक
1868 मैं उपदरव कर रहे थे ।” जिनने बासवाडा के भीलों को विद्रोह हेतु उत्साहित किया।
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