सज्जाद सुम्बुल | Sajjad Sumbul

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Sajjad Sumbul by केशवराम भट्ट - Keshavram Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० ,, सच्नाद सुग्लुत्त । ~~ ^ ~~ ~~ - = +~ ~ ^~ ` ~~~ ~ ^~ ~ ~~~ ~~~ ~~~ ~~~ ^~ “ रस्नाद-- (सके) जो नरी, कुख्र हुआ, कुसूर त्रा, सुश्राफ वोडिये, चाएका सेशे कटम-- [पीछे पौछे सब्नादका सी प्रस्थान] तीसरी स्क्छी) ^>“ विद्र, खानक. गमभेरवह्ादुरव्ता सकान । पशुमशेरवहादर चारपाई पर साधे.लिद्ाफ ताने सटक सडसड़ा रे हैं, चोर एक नौकर पांव टद रद्ध है--साथ सेड सोचा विये अन्बार सास्मै खडः ई पम ०-अवै इस पांवक्ता दावः इस पावका! बच्रा क्या! जारसे रे जारसे। आज भरपेट खाया है कि नहीं ? अद हा हा चरासजादेने सारौ जानल, ज्ञा छमारो (जान । (उल दै सौकरका एफ तसाचा जडके) समर इशामजादा टे वरसद हमार य्ीं कास कर रहा है; असीतक हरासीके पिशेने पांव दावना सहीं सौदा डे! (नौकर शंस्‌ पोरुता है)-हां हां वछों वच्दीं । जरा और जारसे। (बौच बौचमें सटक सड़सड़ाता जाता है |) आंख बन्द करवों) हां देख ते रेकी, सव तेसा मौना वटं दया । चराः (कुछ देरवी वाद) क्यों रे, वादिसनी बुढ़िया अंवेर गड्‌ १ वौकर--्रीकौ जाये बड़ा दंड इरा, सडक्राड । अब्दाल--सुकको क्या इदस सोता हे ९ मुक्षे क्या कलशौ चला जाना पड़ेगां । है | पसर दां, कल सुय नरके तडके तुम यद्धांरे चसे जो । ध तुदं मालत मैंने अपने पाससे खिला पिला पीस पालक इतना थ




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