सामाजिक आदर्श की अवधारणा के संदर्भ में गाँधी और मार्क्स के विचारों का तुलनात्मक अध्ययन | Samajik Aadarsh Ki Awadharana Ke Sandarbh Men Gandhi Aur Marks Ke Vicharon Ka Tulanatmak Adhyayan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : सामाजिक आदर्श की अवधारणा के संदर्भ में गाँधी और मार्क्स के विचारों का तुलनात्मक अध्ययन  - Samajik Aadarsh Ki Awadharana Ke Sandarbh Men Gandhi Aur Marks Ke Vicharon Ka Tulanatmak Adhyayan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राम सुभम सिंह - Ram Subham Singh

Add Infomation AboutRam Subham Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
निरन्तर प्रकाश और गरमाहट देती रहती है।* डॉ० मुकर्जी मूल्यो के तीन आयाम माने है १- जैविक २- सामाजिक तथा ३- आध्यात्मिक । जैविक मूल्य स्वारथ्य जीवन-निर्वाह कुशलता सुरक्षा आदि से सबधित होते है। सामाजिक मूल्य सपत्ति प्रस्थिति प्रेम तथा न्याय सबधी होते है तथा आध्यात्मिक मूल्य सत्य सुदरता सुसगति तथा पवित्रता विषयक होते हैँ । आध्यात्मिक मूल्य साध्य मूल्य अथवा लोकातीत मूल्य होते है ओर सामाजिक एव जैविक मूल्य साधन या बाहय मूल्य कहलाते है | डॉ० मुकर्जी ने सामाजिक सगठन के चारआधारभूत प्रारूपो के सदर्भं मे भी मूल्यो का एक श्रेणीकरण प्रस्तुत किया है ये प्रारूप है* भीड (८1०४५). स्वार्थ-समिति (16.851 288001411011) समाज (3०५16) तथा सामूहिकता (णपा) | भीड सबसे अस्थायी समूह है जोआदिम प्रवृत्तियो व सवेगो से भरपूर होनेके कारण विनाशकारी होता है। भीड मे आदर्श नियम या मूल्य शून्य होता है। स्वार्थं समिति एक या कुछ स्वार्थो की पूर्तिं केलिए सगठित होती है जेसे- श्रमिक सघ शिक्षक सघ कर्मचारी सघ आदि। समाज या समुदाय स्वार्थ-समूहो की अपेक्षा सामाजिक सगठन के अधिक विस्तृत तार्किकं व नैतिक आधारो को प्रस्तुत करता है। इसीलिए समाज या समुदाय मे इच्छाओं सवेगो तथा स्वार्थो का अधिक एकीकरण एव व्यक्ति के साथ व्यक्ति का तथा स्वार्थ के साथ स्वार्थं का अधिक समायोजन देखने को मिलता है। समाज मे समानता वं न्याय के मूल्य अभिव्यक्त होते हैँ । सामूहिकता (@0प718118111) सामाजिकसगठन का श्रेष्ठतम स्वरूप है जो किं सचेत अनुशासन उच्च स्तरीय बुद्धि व विवेक का परिणाम होता है। इसमे सार्वभौम सद्भाव अपने कर्त्तव्य -कर्मो के प्रति आन्तरिक निष्ठा तथा स्वार्थभाव पर परार्थभाव की विजय देखने को मिलती है । स्वत प्रेम सामाजिक उत्तरदायित्व समानता तथा सहयोग सामूहिकता के आधारभूत मूल्य है | ० मुकर्जी के उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि वे वर्तमान (पूँजीवादी) समाज की स्थिति से सतुष्ट, नहीं है तथा मूल्यो की वास्तविक अभिव्यक्ति केलिए समाजवादी समाज की कल्पना करते है जरह लोग प्रतियोगिताकी जगह सहयोग के आधार पर जीवन यापन कर सके | गाँधी और मार्क्स ने भी ङ० मुकर्जी की भति सामूहिकता के जीवन परबल दिया है । दोनो ही प्रतियोगिता-मूलक समाज को मानवता के विकास मे बाधक मानते हैं। गाँधीजी ने लिखा है- ग्राम स्वराज्य की मेरी कल्पना यह है कि वह एक एसा पूर्णं प्रजातत्र होगा जौ अपनी अहम्‌ जरूरतो के लिए अपने पडोसी पर भी निर्भर नहीं करेगा ओर फिर भी बहुतेरी दूसरी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now