श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 96 | Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 96
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
183
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९१९)
यी | लघ उनके वेमव के दिन थे तव बह फोटी उनके मोद
प्रमोद का स्थल था । बर्हो सगीत नृत्य भादि होते थे! श्व
उतरी श्रार्थिक दशा धरिगड गयी थी, श्रतः वह कोटी उन्होने
हमें रहने को दे दी । कुछ मासिक किराया वे चुपके से हम से ले
लेते थे । बह स्थान हमारे झाश्रम के सर्वथा 'झनुकूल था । विस्वृत्त
चागयथा, कश्नाथा] भव्य ण्कान्तमें बोठी थी । 'झास-पास हरे
लद्लष्टाते सेव थे । कोरी वहत अचे पर थी । नीचे उसके एक
कच्ची सडक थी । पास ही काशीबिद्यापीठ थी । फाशीवियापीठ
के काशी वासी जितने छात्र तथा श्रध्यापक ये, सव हमारी कोटी
के ही नीचे से दोनो समय निकला करते ये । चाबू सपूर्णानम्द्जी
पं० गोपालजी शाखी, टशनकेशरी ये नवीन तथा प्राचीन दर्शनों
के अध्यापक थे 1 दोनो कासु पर श्रर्यन्त स्नेह था} प० श्नलग्
सयजी शाली, श्री लालवदादुर शाखी, शी त्रिमुवननारायण सिष्
जी, श्री कमलापतिजी त्रिपाठी, श्रीकेसकरजी, श्री राजारामजी
शास्त्री, श्री... . ्ादि-झादि जो उस समय काशी विद्यापीठ के
छान थे, वे नित्य ही चहीं से निकलते । इन सबसे मेरी झात्मीयता
थी । चावू सम्पूर्णीनन्दजी का श्राप्रद् था श्राप पाश्चात्य दर्शन
सुनने श्राया करें । में नित्य सो नदीं जव श्रवकाश होता, तव
उनकी कन्त भें पाश्चात्य दर्शन सुनने जाता था । चाय् भगवान्
दासजी उन दिनो वहाँ के कुलपति थे, थे भी दर्शन पढाते थे,
कभी-कभी उनको कक्षा में भी में जाता था । उन दिनों काशी
विद्यापीठ का स्परूप ही दूसरा था । प्राचीनता के उपासक
विद्यापीठ के सस्थापक वानू शिवप्रसादूजी गुप्त की इच्छा थी,
कि यो से विशुद्ध भारतीय सस्छृति सम्पन्न छात्र निकलकर देश
विदेशो मेँ दिन्डु घमं का प्रचार प्रसार कर । श्रतः उन्दोमे दो कठोर
नियम चना दिये थे । एक तो विद्यापीठ फभी राजकीय
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