श्री भागवत दर्शन भाग - 69 | Shri Bhagawat Darshan Bhag - 69

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shri Bhagawat Darshan Bhag - 69 by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

Add Infomation AboutShri Prabhudutt Brahmachari

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ११) विनोद होता है, सुख में हँसने लगते हैं, तब भी मेरा विनोद शोता है । छसे चच्चे खिलीने से प्यार करते हैं तय भी प्रसन्न दोते हैं ग्मौर उसे उठाकर पटक देते हैं, फट से फोड़ देते हैं, वो फोड़ने में मी उन्हें 'मानन्द 'आाता है । इसी प्रकार सभी प्रकार की चेष्टाये मेरे मनोविनोद का साधन हैं । चलो मैं केसे क्रीड़ा फरता हूँ तुम देखो । यह्‌ ककर भक्त श्रौर भगवान्‌ चल दिये । कहना म होगा योनो श्रदश्य रूपसे चले । यागे चलकर देखा नदी में एक नौका था रही है, भगवान तुरन्त सप॑ घनकर नींका में चढ़े सर्प ' को देखकर सभी यात्री भयभीत दो गये नौका उलट गयी। सब जल में डूच गये । भगवान्‌ हँस पड़े । सक्त ने लोगों के मुख से सुना- सच का काल श्चा गया था ।” किन्तु कटने वाला यह नहीं समक सका कि काल रूप में भगवान्‌ ही आते हैं। ` ` , आगे चल कर देखा दो सगे भाई कहीं से आ रहे. हैं । दोनों ही राज कर्मचारी ये, भगवान्‌ तुरन्त मोहिनी रूप रखकर उनके पीछे लग लिए । दोनों के ही मन में तूफान उठने लगा । प्रश्नों की 'भड़ी लग गयी । किन्तु र'गीली मोहिनी तो वड़ी लजीली भी थी । कटाक्ष उसके ऐसे पैंने थे कि समस्त 'भ्रख्रशख्र उसके सामने कु'ठित हो जाते थे । सब ग्रश्नों के 'झनन्तर उसका छोटा-सा संक्तिप्त उत्तर या । भम मातृ-पित्‌ विहीना कमारी कन्या ह, तुम मे ते कोई भाई भुम श्याश्रय देकर श्चपनी जीवनसंगिनी चना लो जिससे मेरा निर्वाह टो जाय । इतना सुनना या कि दोन लगा दोनों भाइयों में युद्ध 1 पदिले तो वाकूयुद्ध हुधा । “छोटा कहता-मैंने पहिले इसे देखा है, मन से वरण किया है, अव यद्‌ तुम्हारी पुत्री के समान दै ए वड़ा कटता-“भेरे रते तुमे विवाह करने का धिकार ही




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now