रामायण सटीक | Ramayan Sateek (i)

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Ramayan Sateek (i) by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। मारतम वौदध-धमंका उत्थान और पतन । १३ स्थापित द्वोते देखते हैं । इसी समय भारतीय वौद्धोको हम तिच्वततपर धमं चिजय करते भी ` देखते ह ! १ भीं शतान्दीमे' जब कि, उक्त दन्तकथाके अनुसार भारतसे' कोई भी बौद्ध न रद्दना चाहिए, तब तिव्यतसे कितने ही बौद्धः भारतमे' आते हँ; जौर चह सभी जगह बौद सौर भिक्षुको पाते हँ |. पार-कारुके उद्ध, बोधिसस् ओर तान्त्रिक देवी-देवतार्ोकी गृहस्थो नारो खण्डित मूर्तियां उत्तरी-मारतके गो्वतकमे' पाई जाती हैं । मगध, विनेकर गया जिरेमे तो शायद्‌ ही कोद गाँच होगा, लिससें इस काठकी सूर्तियाँ न मिलती हों ( गया- जिछेके नहदानाबाद्‌ सब-डिवीजनके कुछ गॉ्ोंस इन सूर्तियोंकी भरमार है, केस्पः, वजन आदि गावोंमें तो अनेक चुद्ध, तारा, अवलोकितेश्वर आदिकी मूर्तियाँ उस समयके कुटिलाक्षरास ये धर्मा हेुप्रभवा ””*” इलोशसे अङ्कित मिर्ती हैँ ) । बह वतरा रही है किं, उस समय वौद्धौ को किसी शंकरने नेस्तनावूट न कर पाया था } यही बात सारे उन्तर-भारतमं प्राक्च तास्र-लेखों कोर दिर्ला-लेखोंसे भी मालूम होती है । गौडनृ पति तो मुसरूमानोके विद्दार-वज्ञाल विजय तक बौद्ध धमं भौर कलाके महान्‌ संरक्षक थे, अन्तिम कारु तक उनके ताश्न.पन्न, बुद्ध भग- वानूके प्रथम धर्मोपदेदा-स्थान श्टगदाव ( सारनाथ ) के सखन दो सगोफे बीच रखे चक्रसे अलंकृत होते थे । गौढ्‌-देशके परिचिममे कान्यङ्खग्जका राज्य था, जो किं यञुनासे गण्डक तक फैला हुआ था | बके प्रजा-जन और चुपति गणमें सी वौद्ध-धर्म खूब संमानित था । यह बात जयचन्द्रके दादा गोविन्द्चन्द्रके जेतचन-विहारको दिये पाँच गॉर्वोके दान-पत्र तथा उनकी रानी ुमारदे्ीके दनवाये सारनाथे महान्‌ वौद्ध-मन्दिरसे मालस होती है । गोदिन्द्‌- चन्द्रके पोते जयचन्द्रकी एक प्रमुख रानी वोद्धघर्मावलस्विनी थी, जिसके लिये लिखी गई प्रज्ञापारसिताकी पुस्तक जब थी नेपाल द्वार-पुस्तकारूयमें मौजूद है । कन्नोजमें गहदवारोंके समयकी कितनीही वौद्धमूतियाँ सिलती हे, जो जान किखी देची-देद ताके रूपमे जी जाती हे] काङिञ्जरके राजाआके समयकी चनी महोबा आदिसे प्राप्त सिंइनाद-अवलो कितेश्वर आादिकी सुन्दर सूर्तियाँ चतछा रही हैं कि, तुर्कोके जानेके समय तक बुन्देलखण्डमें बोद्धोंकी काफी संख्या थी । दक्षिण-मारतमें देवगिरि ( दौर्ताबाद, निजाम )ॐ$ पासके एरोरकरे सव्य गुद्दा-प्रासादोसें भी कितनी ही बौद्ध शुदायेँ ओर मूर्तियाँ, सलिक-दाफूरसे कुछ ही पहले तककी बनी हुई है । यही वातत नासिकके पाण्डवरेनीकी ऊख गुहाजेके विषयमे भी है । क्या इससे नहीं सिद्ध दोता कि, दॉकर-द्वारा वोद्ध-धर्मका देश -निर्वासन क्टपना माच है । खुद छंकरकी जन्मभूमि केरखते वोद्धोका प्रसिद्ध तंत्र-मन्य ^मंजुश्री-मूरखकस्प” संस्कृतम भिका है, जिसे वहीं त्रिवेन्द्रसूसे स्व० महामहोपाध्याय गणपत्िास्त्रीने प्रकाशित कराया है | क्या इस अ्रन्धकी प्राप्ति इस वातकों नहीं बतलाती कि, सारे भारतसे वोद्धांका निकाठना तो अलग खुद केरठसे भी वह बहुत पीछे छुप्त हुए । ऐसी ही और भी चहडुत सी घटनाएँ और प्रमाण पेश किये जा सकते हैं, जिनसे इतिहासकी उक्त चरी धारणा खण्डित हो जाती है । रेकिन प्रन होता है * तुर्कोने वो बौद्धो ओर बाह्यणे टोनोके दी मन्दिरोको तोडा, पुरोहितो को मारा; क्षिर क्या दजहद है, जो घाह्मण भारतमें नव भी हैं, और वोद्ध न रहे? चात यदद है : प्राह्मणघमं में युदस्थ भी धममंके अगुआ दो सकते थे; वॉद्धामे' भिल्लुओपर ही 'घर्सप्रचार भर घामिक अन्थोंकी रक्षाका भार था । सिक्षुलोग अपने कपडों सौर मोके




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