गंधमण्डल की रानी | Gandhmandal Ke Rani
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
97
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गढ़मण्डल की रानी
बघारने वाले हैं। दरबार में बंठे हुये राजाओं श्रौर सरदारों को
सिकन्दर कौ यह बात बड़ी बुरी लगी, परन्तु वे खून का घूँट
पीकर रह गयें । वे विवद्य थे क्योंकि वे पराजित हो चुके थे।
किसी के शभ्राधीन हो जाने पर सब कुछ सहन करना पड़ता है ।
गलामी की जिन्दगी बड़ी श्रपमानित जिन्दगी होती है, राज-
कुमारी । खेर, दरबार समाप्त होने पर सब श्रपने-भ्रपने घर चले
गये। पर भारतीय वीरों के लिए कहें हुए सिकन्दर के ये
ग्रपमान भरं शब्द एक दूसरे के महसे निकल कर हुवा की
भांति चारों श्रोर फैल गये ! जो सुनता, वही क्रोध से एक बार
तमतमा उठता । लेकिन सिकन्दर को नीचा दिखाने का साहस
किसमें था? किसी के श्रन्दर हिम्मत नहीं थी कि वह कोई उपाय
सोच कर सिकन्दर को मँहतोड़ जवाब देता ।
राजकुमारी ने ग्रचम्भे से राजगुरू क श्रोर देखते हुएं पूछा,
फिर क्या किसी नेमी सिकन्दर को नीचा नहीं दिखाया ?'
राजगुरू मुस्कराकर बोले, दिखाया क्यो नहीं? क्या
हमारा देश कभी वीरों से खाली रहा है ? यह तो श्रापसी फूट
का फल है कि भ्राज यहाँ मुसलमानों का शासन दहै, नहीं तो
भारतवर्ष सदा से शूर-वीरों, विद्वानों और महात्माओं का देश
रहा हैं । संसार में कोई देवा इस सानी का नहीं है । यही एक
देव है जहाँ सारे संसार के साथ भाई-चारा बनाए रखने का
पाठ पढ़ाया जाता है। यहाँ के सम्राटों ने कभी किसी को
सताया नहीं श्रौर न किसी देश पर श्राक्षमण करके उसे श्रपना
दास बनाये रखने का प्रयत्न ही किया । एेसी-- --
... राजकुमारी ने बीच में टोक दिया, यही तो उन्होने गलती
0. ति
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