गंधमण्डल की रानी | Gandhmandal Ke Rani

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Gandhmandal Ke Rani by धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गढ़मण्डल की रानी बघारने वाले हैं। दरबार में बंठे हुये राजाओं श्रौर सरदारों को सिकन्दर कौ यह बात बड़ी बुरी लगी, परन्तु वे खून का घूँट पीकर रह गयें । वे विवद्य थे क्योंकि वे पराजित हो चुके थे। किसी के शभ्राधीन हो जाने पर सब कुछ सहन करना पड़ता है । गलामी की जिन्दगी बड़ी श्रपमानित जिन्दगी होती है, राज- कुमारी । खेर, दरबार समाप्त होने पर सब श्रपने-भ्रपने घर चले गये। पर भारतीय वीरों के लिए कहें हुए सिकन्दर के ये ग्रपमान भरं शब्द एक दूसरे के महसे निकल कर हुवा की भांति चारों श्रोर फैल गये ! जो सुनता, वही क्रोध से एक बार तमतमा उठता । लेकिन सिकन्दर को नीचा दिखाने का साहस किसमें था? किसी के श्रन्दर हिम्मत नहीं थी कि वह कोई उपाय सोच कर सिकन्दर को मँहतोड़ जवाब देता । राजकुमारी ने ग्रचम्भे से राजगुरू क श्रोर देखते हुएं पूछा, फिर क्या किसी नेमी सिकन्दर को नीचा नहीं दिखाया ?' राजगुरू मुस्कराकर बोले, दिखाया क्यो नहीं? क्या हमारा देश कभी वीरों से खाली रहा है ? यह तो श्रापसी फूट का फल है कि भ्राज यहाँ मुसलमानों का शासन दहै, नहीं तो भारतवर्ष सदा से शूर-वीरों, विद्वानों और महात्माओं का देश रहा हैं । संसार में कोई देवा इस सानी का नहीं है । यही एक देव है जहाँ सारे संसार के साथ भाई-चारा बनाए रखने का पाठ पढ़ाया जाता है। यहाँ के सम्राटों ने कभी किसी को सताया नहीं श्रौर न किसी देश पर श्राक्षमण करके उसे श्रपना दास बनाये रखने का प्रयत्न ही किया । एेसी-- -- ... राजकुमारी ने बीच में टोक दिया, यही तो उन्होने गलती 0. ति




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