प्रबोध चंद्रोदय एवं संकल्प सूर्योदय नाटकों का तुलनात्मक अध्ययन | Prabodh Chandrodaya Evam Sankalp Suryodaya Natakon Ka Tulnatmak Adhyyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
358 MB
कुल पष्ठ :
475
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)9
रस के प्रसंग में लडाई, मन्त्रण तथा आक्रमण आदि विषयों का भी सांगोँपांग
वर्णन रहता है |
8) नायक तथा प्रतिनायक का संघर्ष महाकाव्य का मुख्य विषय होता है|
(9) अन्तिम उदेश्य होता हे धर्म तथा न्याय की विजय तथा अधर्म तथा अन्याय का
विनाश |
इस प्रकार दण्डी कं अनुसार महाकव्य मं अग्निपुराण वर्णित विशेषताओं के
अतिरिक्त कुछ अन्य विशेषताएँ भी अपेक्षित हैं । जैसे आरम्भ मेँ आशीर्वचन, नमस्कृति
अथवा वस्तुनिदंश तथा कल्पान्तस्थलीं कीर्तिं का वैभव आदि,
अतः दण्डी की दृष्टि महाकाव्य के विस्तार-मात्र पर न रहकर उसकी उदात्त
ओर व्यापक जीवनोपयोगिता ओर विश्वजनीन महत्ता पर विशेष रूप से केन्द्रित रही
हे । महाकाव्य कें लोकरजकत्व पर उन्होने बल दिया है] आरस्भिक मंगलाचरण
विधान में सांस्कृतिक परम्पराओं के निवार्ह की लोक कल्याणकारी प्रवृत्ति विद्यमान हे |
खण्डकाव्य
खण्ड काव्य मात्रा मे महाकाव्य सरे छोटा हो परन्तु गुणौ मँ उससे कथमणि
न्यून न हो -खण्डकाव्य' कहलाता हे । यह महाकाव्य का टुकड़ा न होकर, स्वयं पूर्ण
तथा स्वतन्त्र होता हे | प्रबन्ध काव्य का आघार कोई निश्चित कथानकं होता है एवं
उसके छन्दो मे पूर्वापर सम्बन्ध रहता हे । प्रबन्ध काव्य को भी दों भागों में विभक्त
किया गया हे-
(1) महाकाव्य (2) खण्ड काव्य
आर्याय विश्वनाथ के अनुसार“ खण्डकाव्यं भवेत् काव्यस्य एकदेशानुसारि च”
अर्थात खण्ड काव्य का एकदेशीय रूप होता हँ । महाकाव्य विषय प्रधान होता
हे, परन्तु खण्ड काव्य मुख्यतया विषयी -प्रधान होता हे । जिसमे. लेखक कथानकं
कं रथूल संचि मँ अपने वैयक्तिक विचायं को प्रसंगानुसार वर्णन करता है| यथा
मेघदूत खण्डकाव्य का एक सुन्दर दृष्टान्त हे । इसमें प्रकृति का वर्णन विशेष रूप
से सुन्दर तथा भव्य हे । इसमं बाह्य प्रकृति के सौन्दर्य तथा कमनीयता का उज्जवल
प्रदर्शन हे ओर साथ ही साथ मानव हृदय के कोमल भावों का भी बड़ा ही रूचिकर
प्रयोग किया गया हैं |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...