बजट प्राविधान एवं भारतीय समाज पर इसका आर्थिक प्रभाव | Bajat Pravidhan Evm Bharatiya Samaj Par Eska Arthic Pravahao
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
61 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सुधार दूसरी सरी ओर उपभोक्ताओं पर भार एक ऐसे ली वातावरण को जन्म दे रहे है जिसमें पारस्परिक
समायोजन की महती आवश्यकता है। इस दूरी के दुष्परिणाम व निकट स्थहल की समस्या ही.
अध्ययन की विषय-वस्तु है। ५
(- अध्ययन की उपादेयता या प्रासंगिता- सदियों से हमारा देश दासता की वेडियोँ मे
| जकड़ा था, असीम बलिदानीं के फलस्वरुप जब हम आजादी मिली तो साथ ही साथ विरासत
में मिली- बेरोजगारी, गरीबी ओर भुखमरी, जब हम स्वतन्त्रता की सुबह का स्वागत करने अगे
बढ़े तो हमारे हाथ कौंप रहे थे, क्योंकि हवा में तिरंगा तो लहरा रहा था परन्तु आर्थिक विकास
के नाम पर कुछ भी नहीं ममा था।
` स्वतन्त्रता के वाद भारत सरकार ने नियोजित आर्थिक विकास की प्रक्रिया अपनायी
भारत में आर्थिक नियोजन 1 अप्रैल 1951 से प्रारम्म किया गया था। अब तक रः पंचवर्षीय
याजनायें, तीन एक-एक वर्षीय योजनायें व तीन वर्ष का अन्तरकाल तथा नौवीं योजना के भी
5 वर्ष 31 मार्च सन् 2002 को समाप्त हो गये हैं, और इस प्रकार नियोजन के 50 वर्ष पूरे समाप्त
हो चुके हैं। म भुला द० 0
लगभग सभी अर्थशास्त्रीयों ने लिखा है कि विकासशील देश के लिये आर्थिक नियोजन
वि का बड़ा महत्व है वे कहते हैं कि- “आर्थिक नियोजन हमारे इस स युग की महान ओषधि हे
(ए प्रारम्भ में भारत देश कं आर्थिक नियोजन का मुख्य उद्देश्य मनुष्य के रहन-सहन के
स्तर का ऊचा उठाना, आर्थिक साधनों का समुचित उपयोग करके, उनका बहुमुखी विकास
करना सुखी एवं समृद्ध जीवन की सम्भावनाओं को बढ़ाना, देश मेँ परिवहन साधनों का समुचित
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