शिव प्रसाद सिंह काकथा साहित्य | Shiv Prasad Singh Ka Katha Sahitya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
174 MB
कुल पष्ठ :
415
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ॰ सत्यदेव त्रिपाठी - Dr. Satydev Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( री )
शिवप्रसाद जी की सृनन-प्रतिभा का हिन्दी-समाज से प्रथम परिचय हुआ--
'दादी माँ' कट्टानी के माध्यम से; जो सर्वप्रथम 'प्रतीक' के अक्टूबर अंक में छपी १.
थी । यह कहानी लेखक की वास्तविक दादी माँ के [न रहने पर) प्यार-दुलार भरी.
धुर स्मृतियो कौ “घनी सुत पीड़ा” की अभिव्यक्ति है । लेखक को अपनी माँ से ज्यादा
प्यार-दुलार दादी माँ से मिला था जो माँ को तरह कहानियां नदीं कहती धी, सोक
गीत नहीं गाती थीं; सिर्फ (मेरे) पैरों को घंटो सहलाती रहती थीं कि (ममे)
जाये 17 किन्तु 'दादी माँ की यह् घनीभूत पीडाः जब अंतरतर में कस
अभिव्यक्ति की छटपटाहट से कुलबुलाने लगी तो सोने से पहले (माँ द्वारा) सुनायी
जाने वाली लोकगीतों मे निबद्ध अदुधरुत व्यथा भौर कोट भरी कहानियों के प्रभाव
से उत्पत्न लोककथाओं की अजीब मोहिनी” * ही माध्यम बनी और उस सम्पू
को अपने रूप (कहानी) में ढालने लगी ।
कथालेखन को विकास-यात्रा
| विकास-या्रा मे हम कहानी-उपन्यास को क्रमणः अलग-अलग देखेगे ~
(अ) कहानी
डॉ० सिंह की सम्पूर्ण कहानियों के विकास को दो कालखण्डों में
किया जा सकता है--
- प्रथम युग-(1951-1966)
इस बीच लेखक की विकास-यात्रा के चार चरण (चार संग्रहं के आधार पर)
इस प्रकार देखे जा सकते हैं--
(1) यात्रा का प्रस्थान बिन्दु--(आर-पार की साला 1951-55 )
(2) यात्रा का विकास--विस्तारसुचक प्रथम मोड़--(कर्मनाशा की हार--
1955-58) ।
(3) यात्रा का विकास--विस्तारसुचक द्वितीय सोपान--(इन्हें भी इन्तजार
है--1958-63) ।
(4) यात्रा का विकास--विस्तारसूचक वतीय चरण--(मूरादासराय--
1963-66} 1
(1) यात्रा का प्रस्थान बिन्दु
इस प्रकार (प्रथम परिचय में वर्णित) डॉ० शिवप्रसाद सिह का प्रार् भिक
लेखन माँ भौर दादी माँ के प्यार दुलार भरे सम्मोलन की अ्गंलामे “दादी साँ' की
सुगंध से सुवासित *उपधाइन मैया”; 'दिऊदादा”, बुआजी (नई-पुरानी तस्वी र), देवला
भाभी (कबूतरों का अड्डा) जैसे अनेक ममतालु पुण्य-मल्लिकाओं को पिरोकर (आर-पार
की साला” के रूप में (1955 में) प्रकाशित हुआ । इस संग्रह को डॉ० सिंह के लेखन
16. चतुद्िक--डां ° शिवप्रसाद सिंह, पृष्ठ 202,
।
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विभाजित
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