विश्व शांति एवं अहिंसा प्रशिक्षण | Vishv Shanti Evm Ahinsa Prashichhan

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Vishv Shanti Evm Ahinsa Prashichhan by बच्छराज दूगढ़ - Bachchharaj Dugadh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की आवश्यकता और इच्छा को झुठलाया नहीं जा सकता और हमें यह भी स्वीकार करना ही होमा कि परिवर्तन के साधनो से ही परिवर्तन होगा | अतएव हमें संघर्ष को सदैव हिंसक रूप मे ही न देखकर उसे परिवर्तन के सदर्भ मे भी देखना चाहिए । यह धारणा या विचार मिथ्या है कि “सघर्ष नैतिक रूप सै गलत व सामाजिकं रूप से अनचाहा है । सघर्ष सदैव त्याज्य या विध्वसात्मक ही नहीं होता, यह समूहो के बीच तनाव को समाप्त भी करता है, जिज्ञासाओ व रूचियो को प्रेरित करता है तथा यह एक ऐसा माध्यम भी हो सकता है जिसके द्वारा समस्याए उभारकर उनके समाधान तक पहुचा जा सकता है अर्थात्‌ यह व्यक्तिगत ओर सामाजिक परिवर्तन का आधार भी हो सकता है । सघर्ष का अनिवार्यत यह अर्थ नहीं है कि यह समुदाय व सम्बन्धो के दूटने का कारण है! कोजर ने सामाजिक सघर्षौ की महत्ता को प्रकाशित करते हए लिखा है-सघर्ष असन्तुष्ट के स्रोतो को खत्म कर तथा परिवर्तन की आवश्यकता की पूर्व चेतावनी तथा नवीन सिद्धान्तो का परिचय देकर समुदाय पर एक स्थिर एवं प्रभावशाली छाप छोडता है। अते सघर्ष की दो स्थितिया है- 1 न्यायोचित लक्ष्य के लिए प्रतिस्पर्धा मे शामिल होना एव 2 ऐसा लक्ष्य जो न्यायोचित नहीं है उसकी प्राप्ति के लिए प्रतिस्पर्धा मे शामिल होना | प्रथम यथार्थवादी सघर्षं एक विशेष परिणाम की प्राप्ति के लिए होता है इसलिए यह सघर्ष या तो मूल्यो की सरक्षा कं लिए या उन जीवनदायिनी चीजों के लिए होता है जिनकी आपूर्ति कम होती है। उपर्युक्त अर्थ मे सघर्ष कुछ परिणाम की प्राप्ति का साधन है। समाजशास्त्रियो का मानना है-सघर्ष विहीन समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती । मेक्स वेबर के अनुसार- सामाजिक जीवन से हम सर्द को अलग नहीं कर सकते | हम जिसे शाति कहते है वह और कुछ नहीं है अपितु सघर्ष के प्रकार व उद्देश्यो तथा विरोधी मे परिवर्तन है।' रोबिन विलियम्स के अनुसार--किसी भी परिस्थिति मे हिसा या सघर्ष पूर्ण रूप से उपस्थित या अनुपस्थित नहीं हो सकता | यहा भगवान महावीर की दृष्टि ज्ञातव्य है- उनके अनुसार समाज केवल हिंसा या केवल अहिंसा के आधार पर नहीं चल सकता | प्रो० महेन्द्र कुमार के अनुसार-हिसा की पूर्ण अनुपस्थिति असम्भव 14




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