हिंदी काव्यादर्श | Hindi Kavyadarsh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Hindi Kavyadarsh by इन्द्र विद्यावाचस्पति - Indra Vidyavanchspatiडॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendraरणवीर सिंह - Ranveer Singh

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

इन्द्र विद्यावाचस्पति - Indra Vidyavachspati

No Information available about इन्द्र विद्यावाचस्पति - Indra Vidyavachspati

Add Infomation AboutIndra Vidyavachspati

डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra

No Information available about डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra

Add Infomation About. Dr.Nagendra

रणवीर सिंह - Ranveer Singh

No Information available about रणवीर सिंह - Ranveer Singh

Add Infomation AboutRanveer Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
कै. बे और ६३० ई० के मध्य में श्रा जाते हूं । ” डा० डे ने तो श्रपनी युक्तियो के वल से यही सिद्ध किया है कि जिस पक्ष में श्रधिक लोग हूँ वही न्यायत.. श्रघिक प्रबल है, श्र्थात्‌ भामह दडी से पुर्वेवर्ती है। सक्षेंप में यही कह सकते हैं. कि सम्मवत दढी भामह के ग्रथ से परि- चित थे जिसकी वह श्रवहेलना न कर सके । इस मत से दडी के प्राय सभी टीकाकार तरुण वाचस्पति, हरिनाथ, वादिजघाल आदि सहमत हैं । श्रतएव सम्भवत दडी से भामद को पूर्वेवर्ती माना जाना ही समीचीन प्रतीत होता है । दंडी के ग्रंथ जिस प्रकार थ्राचार्य दडी के काल के विपय में विद्वानों में मत भेंद है, उसी प्रकार उनके ग्रथो के विपय में भी पर्याप्त विवाद है। परन्तु अधिकाद विद्वानू यह स्वीकार करते हैं कि काव्यादशं, ददाकुमारचरित तथा अवस्ति- सुत्दरी कथा इन तीनो ग्रथो का प्रणयन दडी ने ही किया था । काव्यमीमासाकार राजशेखर के एक इलोक से पता चलता हैं कि दडी ने तीन प्रसिद्ध प्रवन्ध काव्यो की रचना की थी । इलोक इस प्रकार है-- चयोग्नयस्त्रयो वेदास्त्रयो देवास्त्रयो गुणणा- । घ्रयो दंडिप्रबन्घाइच त्रिषु लोकेषु विश्नुता: ॥ जाज़ंघरपद्धति तथा जल्दणकृत सूक्तिमुक्तावली में भी यह रलोक उद्धृत हुआ है । इसी ब्लोक के श्राघार पर विद्वानों ने दडी के तीन प्रवर््धों का पता लगाने का प्रयत्न किया । प्राय क्ाव्यादर्श श्रौर दशकुमारचरित को तो विद्वानों ने दडीप्रणीत ग्रथो के रूप में स्वीकार कर लिया, पर तृतीय ग्रथ के विपय में अभी तक झम दिग्ध रूप से कोई निणेय नहीं हो सका है । पिशल ने 'लिम्पतीव तमोड्भानि इस इलोक के झ्राघार पर मूच्छकटिक को दडी का तीसरा ग्रथ माना । पर भासरचित श्रन्य दो नाटकों में भी इस घ्लोक के सिलने से इनका मत पुर्णरूपेण झमान्य हो गया ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now