तत्वार्थसूत्र जैनागमसमन्वय | Tatvarthsutra Jainagamsamnvay

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Tatvarthsutra Jainagamsamnvay by आत्माराम जी महाराज - Aatnaram Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६) है कि श्वेताम्बर श्रागसों मे ततत्वाथसूत्र के इन सूत्रो की ही व्याख्या की गई हो । इस विषय मे यह घात स्मरण रखने की है कि जैन इतिहास के श्रन्वेषण से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि श्रागम प्रन्थो का अस्तित्व ॒उमास्वाति जी महाराज से भी पहले था इसके अतिरिक्त तत्त्वाथेसूत्र और जेन आगमों का अध्ययन करने से यह स्वतः ही प्रगट हो जावेगा कि कौन किस का श्रनुकरण है । अतएव सिद्ध हुआ है कि आगमो का स्वाभ्याय श्रवश्य करना चाहिये, जिस से सम्यम्दशंन, सम्यकाज्ञान श्रौर सम्यक्चारित्र की प्राप्ति होने पर निवांणपद की प्राप्ति हो सके । श्रन्त में श्रागमाभ्यासी सजनों से श्रनुरोध है किव कटी पर यदि कोटे त्रटि देखे या किसी स्थल में आागमपाठो के साथ किये गये समन्वय में कुछ न्यनवा देखें श्रौर उन की दृष्टि में कोई ऐसा ्रागम पाठ हो जिससे कि उस कमी की पति हो सके तो ये




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