पधव्याकरणम | padhvayakrnam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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करविचंशवर्णनम (३) साहियों के व्थासजी थे और प्रश्न के सदा .परायण अरं सत्यरणेल थे ॥ ३ ॥ उक्त पणिडत जी के उत्तम थु शॉंवाले सज्जन तीन पुत्र हुए उन में श्रीयुत शिव दत्त जी शास्त्री और श्रीयुत शंकरजी ये दो बड़े पुत्र और इन दोनों से छोटा पुत्र जो कि इस व्याकरण चास्त्र ब्ही.पद्य रचना करने में प्रदत्त इया खरौर खव विदधाना. के चरण कमल का दास लालचन्द्र नाम का मैं हूं ४॥ मै परमेश्वर से नित्य आशावान्‌ दं कि इस पुस्तक में जो मेरा परिश्रम है वह्‌ संपृणं संस्कृत विषथक पुस्तकों ने अत्यस्प परिश्रम से पठने पर्वक जो व्याकरण शाख के शिष्योंका खुक्रूत ह उसके अशृ श्फल रोजायगा ॥५॥ गवात्मकेषु किल दीर्घतरेषु सत्सु , ¢ क मेते श्रीशाब्दबोधनपरेष्वामेतेषु भूम्याम्‌ । शब्दाणैवप्रतरणे पिहितोथमानां ` पदयप्लवं विरचयामि मुदे शिशूनाम्‌ ॥ ६॥ यद्यपि इस भारत भमि में बड़े बड़े लंबे चोड़ व्या- करण दास्त्र बहुत हैं तथापि उनके गद्यात्मक होने से शन्द्‌ सखद को तरने मे उम दीन होजानेवाले थि धाथेयो के दषं के वास्ते पयय श्र्थात्‌ शलोक बद्ध व्याकरण रू पी प्तेवं ( अल्प नौका ) रचता हूँ ॥ है ॥ ` [{ सहाभाष्योदितानि चाव्द्प्रयोजनानि ] शब्दोप्यथेत्पयमलं वधिकारवाचीं शब्दाचुशासनमिदं खलु वेदितव्यम्‌. ॥ शाखं द्यधिकृतमततं नितरां च शब्दे, ` केषातु लोकिंकसुवेदिकभावभाजाम्‌। ७1




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