फ़िजी में मेरे 21 वर्ष | Fiji Men Mere 21 Varsh

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Fiji Men Mere 21 Varsh by पं. तोताराम सनाढ्य - Pt. Totaram Sanadhya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फिजी दीप में मेरे २१ ये | नवह-० नह वननवा-नननका-नवनया-दपननवह-नम--वेन-याननका-न-काननक-नका-क-नपी-नणका- नव क प्रेम मुझे घर की झोर खीचे लाता था श्रौर कभी माता के दुख की स्मृति मुके इस घात षे लिये बाध्य कर रही थी कि में कहीं काई नौकरी कर लू' झौर घर न जाऊ-। इस प्रकार मैं दुविधा में पड़ा हुझा था! पक विन मै कोतवाली के पास चौक में इसी शधिक चिन्ता में निमझ था कि इतने में मेरे पास एक श्रपरिचित व्यक्ति श्राया और उसने मुझ से कहा “क्या तुम नौकरी करना वाहते हा १ » मैने कहा हा । तब उसने कहा च्छा हम लुम्हं बहुत अच्छी नौकरी दिलवःवेगे । देसी नौकरी कि तुम्हारा दिल खुश हेजजावे । * इस पर मैंने कहा में नौकरी तो करूंगा लेकिन ६ महीने या सालभर से अधिक दिनि के लिये नौकरी नहीं कर सकता' । उसने कहा श्रच्छा ! श्रादो तो सही, जब तुम्हारी इच्छा हे तव नौकरी चोड़ देना के!६ हज नही, चलो जगन्नाथ जी के दशन तो कर लेना । मेरी बुद्धि परिपक्र तो थी नहीं में बातों में श्रागया । पाठकगण ! हा ! इसी तरह « थाखे में आकर सहस्रों भारतवासी झाजन्म कष्ट उठाते हैं । षदे मेरे सुभिक्षित देशवन्धुञ्चो } क्या श्रापने कमो इन भाइयों के विषय में कुछ विचार किया है ? कया श्राप के इदय में कभी ही इन दुःखित भाइयों के लिये कुछ कष्ट हुआ है. ? क्या कभी बसी सजला खफला मातभूमि के उन पुत्रों के यि'य में श्रापने खुना है जो कि डिपावालों की दुष्टता से दृखरे दभो; म भेजे




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