स्तोत्रादि संग्रह | Stotradi Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
54
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २)
स्य संहररा-निराकरण तत्र तुगनरंग-उ्चकलटोलं यत्तोयं तदि.
खयः संस, भवारिभयदावक्रालकीला संभार संहरण तुगत-
रंगतोयम् ॥ इति प्रथमन््तार्थः ॥१॥
अथ प्रभोः सचेराणोत्कीसने सुरादीनामशक्ति संभाव्य-
स्वगव परिह्रस्ाह --
देवानरा विमल चुद्धियुणाहिनाव-
गच्छन्ति देव ! निखिरु गुण सं चयन्ते ।
मंतु नतं सममलं जडपुगवोह-
छरंछामि छन्तु तवं देव ! गुणाणुमेव ॥ २॥
देधा-इत्यादि । देषाः-स्ुरा नरा-मयुष्या उभयेऽपि की
इङाः- विमलबुद्धिगुणा निमेलमतिमंतो शि-निश्चयेन न अवग-
च्छुति-न जानन्ति! हे देव! निखिले-समप्र गुण संचयं-गुण-
बुन्दं ते-तव ' भतो मतु-क्लातुननेवतं त्वहणसंचय समे सर्य
मिश्नोक्ती प्रयुज्य मानत्वान्न पोनसखुक्त्यं । मथवा समं सश्रमारो
कतिपयं गल समर्थों जडपुंगवो-महामूर्खोद मित्यात्मनिर्देशे ।
लतः किंकरोमीत्याद-कितु तथाप्यर्थे हे देव ! तच सुणाखुमेच-
शानादिगुणलेशमेत्र उड्छामि य़द्दीत घान्यावदि एकणादानमिव
स्तोक २ यगुद्धामीत्यर्थः ॥ २ ॥
अथगुशलवग्रहटणमेव सक्रल्तेऽपि स्तोत्र प्रातुर्भावयिष्य-
आह
हे वीरहीग्सुरर्सिधुरसिद्धसिन्धु-
डिंडीर-पिण्डघवला गुणभोरणी ते ।
गोविंदवारिरुदसंभववा मदेव-
मायाबिदेव निवड्े न मलीमसा वा ॥ है ॥।
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