श्री सिद्ध क्षेत्र पूजासंग्रह | Shri Siddha kshetra Poojasangrah

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Shri Siddha kshetra Poojasangrah by कुन्दनलाल जैन - Kundanlal jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीसम्मेदशिखर- विधान | ७9 ॐ ह श्रीसमेदश्िखरपिद्के्के प्रमा सक्रदसे श्रीषु- पाश्वनाथभनिन््ारि सुमि उ पचाप्त कोड़ाकोड़ी चौरासी कोटि बहतर टाख पात हजार सात ब्याठीस सिंद्धपदग्रातम्य, जे निवैपामीति स्वाह ॥ ६॥ आनद करत सकर जगतको, तथा मो तिधिर इर पे दोषरूप करटक वर्धित, अमल चन्द्र-प्रमा धरं ॥ तेचन्द्रनाथ जिनेश जइते शिदरमा-नायक मए तिम उण श्रीचन्द्रपमुतीयैकरादि निर्वाणसूभये पुष्पांज्टि शिपत्‌। सुन्दरी छद्‌ । चन्द्रप्रभु आदिक सुनिराजजी । हौ था भूतै शिषराजजी। सं जजत हू वड द्रव्य चटायक्र। वषु जुणमक्षी भाश्च छगायक्षे ॐ ही श्रीसमोरशिखरसिद्धकषेत्रके खंरितक्कटसे चन्द प्रभुमिनेन्द्रांदि मुनि चौरासी कोड़ाकोड़ी बहतर कोटि अस्सी यख चौरासी हजार पांच पचवन पिदधफद मतिभ्यः अर्घं निवेपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥ ले कुद पुष्प समान द॑तन, कांतिकर राजत प्रभो । ते पुष्पद॑त ड दिव्यध्वनि,कर भव्य भव तारत विभो! उत पुष्पधन जरति करभ हनि,लोकदिखरविष थये ति. ॐ श्ीपषपदंततीथकरादि निवांणमूमये पुषयाज्ञ कित्‌ । पुष्पदुंत प्रस आदिकं सुनी | यहाँ धिर दोय मववाषा द्ुनी ॥




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