सामाजिक अनुसंधान विधियाँ एवं क्षेत्र प्रविधियाँ | Samajik Anusandhan Vidhiya Evm Kshetra Pravidhiya

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Samajik Anusandhan Vidhiya Evm Kshetra Pravidhiya by डॉ० एम० एम० लवानिया - Dr. M. M. Lawania

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पर्विय १ 2 निष्पक्षता कौ सम्मावना (एण्ड पणमयी फ)-- सामाजिक ग्रनुसथान में अ्रनुसबानकर्ता शऔर विपय दोनों ही सम्मिलित हैं । किवी विषय कौ जानकारी तभी सम्भव है, जव अनुसधानकर्तां निष्मक्षतापर्वंक उसका अध्ययन करे । उसकी स्वय वी भावनाएं, पूर्व घारणाएं तथा व्यक्तिगत विचार झनुसधान मे परिलक्षित नहीं होने चाहिएँ 1 प्राय देखा गया है कि अनुसधानकर्ता रपि निरीक्षण नौर रेवन में तटस्थ होता है । वह वस्तुस्थिति का अवलोकन कर, उसके विभित पहलुप्नो को बारीकी से छानवौन कर, निणंय पर पहुंचने की कोशिश करता है । 3 सामाजिकं घटनापों में क्रमबद्धता (5६्व्‌४८४८९ + 5०८१ एष्पाऽ) - सामाजिक घटनाएं अनायास नही घटती है \ इन घषटनाप्रो के पचि निश्चित नियम व क्रमबद्धता होती है । यदि उनमे क्रमबद्धता न हो तो हम किसी भी प्रकार उनका पूर्वानुमान नही लमा सकते \ यह्‌ व ता विलकुल गलत होगा कि ्रस्येक धटनां एक दूसरे से सर्वथा स्वतत्र और पृथक्‌ है । जैसे ही हमे क्रम का पता लगता है, हम सही रूप में भविष्यदाणियाँ कर सकते हूँ । 4 श्रादशं प्रतिरूपो कौ सम्भावना (055४ ग 1व९ा {7:}-- शसम सामाजिक तथ्यो को श्न! प्रति बपा में बाँटा जा सकता है । इन शादर्श प्रतिरूपों के श्स्तरगंत कुछ व्यक्तियों का प्रध्ययन कर उनकी विशेषताश्रो को सभी वर्गों पर लागू किया जा सकता है । यदि हम मजदूर वर्ग, विद्यार्थी वर्ग या स्त्री वर्ग को लें तो हमे इन पृथक्‌ पृथक्‌ वर्गो मे उनकी रचियो के सम्बन्ध मे, व्यवहार व विचारो के सम्बन्धं मे काफी समानक्ता एव सामजस्य मिलेगा । दस प्रकार एके मरोसन मजदूर या संत्री का प्रध्ययन समस्त मजदूर समुदाययास्मी वगंके गणावुणो का ज्ञान करा सकता है । 5 निदशंन को सम्मादना (ए०ऽल्फनाफ्‌ ग ऽउणफाटो-प्रतिनिपित्व- पूर्ण निदर्शन पद्धति के श्राघार पर प्राप्त निष्कर्ष समग्र वर्ग पर लागू किए जा सकते हैं क्योकि मानव समुदाय विद्ञाल है अत प्रत्येक व्यक्तिं का सूक्ष्म श्रध्ययन दौर जानकारी विस्तृत रूप मे सम्भव नहीं है । अत निदर्शन प्रणाली का प्रयोग किया जाना आवश्यक है जिससे ग्रनुसधान कार्य सुगम एव शोध हो जाता है । झनुसधान पद्धति को पढ़ने के कारणण (१८३९०0०5 ० ऽणः 7६ एरडल्वाते पअलण्प) झनुस्रघान प्रक्रिया आर तकनीकी एवं पद्धतीय क्षमता के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। भनुसघान काय॑ की गहनता, सुकषमता एव परिशुद्धता को दृष्टि मे-रखते हुए यह भनिवायं हो जाता है कि हम इसका सवालन शुद्ध एव सही ढग से करें । इम बात की भादश्यकता विशेष रूप से प्रव अनुभव को जा रही है, जवक्ति सामाजिक विज्ञान के भ्नुसघान कार्य पर बल दिया जा रहा है। सामाजिक-वैज्ञानिक (50८31




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