राष्ट्रभाषा विचार संग्रह | Rashtrabhasha Vichar Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
388
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१४)
पिछले आठ-दस यपोंमें राष्ट्रभाषाके समन के शाय-साथ उसका
विरोध भी चल रहा है, निस्ते रष्टूमावाकी प्रगतिमे गत्यावरोध तो हुआ हो
है, सबही हिन्दौ भौर हिग्दीतर भनादा-भाषियोमें पारस्परिक मतभेद बढ़ रहे हैं
सौर राष्ट्रफो भावनात्मक एकताको भारो सतरा पंदा हो गया है। ह् एफ
ज्वलन्ति समरपा है ! इस्येः सभ्वन्धरमे जाचायं नन्द दुलारे वाजपेयी, डॉ. वो. के.
आर्. वो. राय, डॉ. रामलाल सिह, ॐ. कमलाकान्त पाठर. डो. रामचन् प्रस्हाद
पारनेरफर, स्व. आचार्य ललिता श्रसादजो सुकल, डां. भगवानदास तिवारी
सौर डॉ. न. लि. जोगलेकर आदिके लेए चतुर्थ अध्यापमें संझसित कर दिये गये हैं
पंचम अध्यायमें हिन्दीका मादीरुप विशद फरनेवाले स्व, पं. जवाहरलाल
नेहरू, उपराष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसेन, भरा. कृ. गं. दिवाकर, अं. भगोर मिध
डॉ. न. लि. जोपलेकर, डॉ. राजनारायग भौं आदरे तेल विशेष-रूपसे
संग्रहीत किये. गये हूं तथा पष्ठम अध्यायमें श्री. दार्तिभाई जोबनपुना-दारा
लिपित ' हिन्दी-प्रचारक संस्याजकः परिचय ' तया लेल ड. न. लि. जोगलेकर और
डँ भगवानदास तिवारी कम किला - राष्ट्रभाषा-प्रचार मान्दोलनका इतिहास
श्री. पं. मु. डागरेनोका ' रष्टरभाशा प्र-विचार ' शर्व ञव एवं अ्रेजो-तिषेपकके
सम्बन्धका श्रौ. द. कृ. वड्डीकरजीका लेख विशेष रूपसे जोड़ दिये गये है । आशा है,
राष्ट्रभायाकी समस्याओंति परिचित होने में; इन लेखोंसे पाठकोको सहायता एवं सार्ग-
दर्बोन प्राप्त होगा । अंतमें हित्दीमें ग्रहाशित पम-परन्रिकाओंकी सूची सी दी गई है।
अनेक वाद-वियादोंमें रुचि लेते हुए भी, यदि हमारे पाठदा-गण इस प्रंपसे
राष्ट्रभाषाकी प्रतिष्ठाके लिये विधित प्रोस्साहुन तथा मा -दर्शन पाएंगे, सो हम
अपने प्रयासकों सार्थक समझेंगे।
इस पंयको राष्ट्रभापा-प्रचार-समिति, वर्घा तया हिन्दी-ताहित्य-सम्मेलन,
श्रयाय ने अपनों परीक्षाओंफे पाठ्य-ऋममें स्थान दे कर हमें उपछत किया है!
उनके हम हदयप्ने आभासे ह ।
जिन विद्वानोंकी रचनाओंते इस प्रंयकी प्राण प्रतिष्ठा हुई है, उनके भी
हुम चिर ऋणी हैं ।
इस संस्करणका संपादन करते समय हमें पुनः एक बार हमारे, दिवंगत
विद्वान सहयोगी सम्पादक स्व. प्रा. शं. दा. उपाद्य अप्पासाहव चितलेजीका स्मरण
हुए बिना नहीं रहता । बस्तुतः इस पुस्तकके प्रगयन-सुम्रका स्व प्र. शं. दा.
चिंतलेजीके सुपोग्य माे-दर्शन और घोजना-बद्ध प्ररणाते ही सम्बन्ध है, इसे हम
कदापि नहीं भूल सकते । उनके प्रति हम स्देव ऋणी रहेंगे ।
भ्रस्तुतं सत्यःरणङे किए निन महानुभग्वोने अपने आशव चन, प्रास्ताविक
दो-हाग्द तथा अभिमत भेजकर एवं सू मिका लिखकर हमें उपकत फिया हैं, उनके
भरति भमन कृत्तता व्यक्त करना हम अपना परम कतंब्य मानते हैं।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...