धर्म का स्वरुप | Dharm Ka Swarup
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
105
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)41
परमे प्रकट होता दै, जो कुं र्ट हो रहा दै, वह उन्हों का आनन्द
रूप है उन्ही का अमृत रूप है. अर्यात् उनका प्रेमहै। विश्व-जगद्
उनका अमृतमय आनन्द है, उनका प्रेस है
सत्य की परिषुर्णता हो प्रकट होना है, सत्य की परिपूर्णता हो प्रम
है, आनन्द है । हमने तो. लौकिक व्यापार ही देखा है, अपूर्ण सत्य
अपरिस्फुट होता है । गौर यह भी देखा है कि जिस सत्य को हम जितने
सम्पूर्ण रूप मे उपलब्ध करेंगे, उसी में हम उतना ही आनन्द, उतना
ही प्रेस होगी । उदसीन के निकट एक तिनके में कोई आनन्द नहीं है,
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