श्रीजैनवद्रोमूलवद्रोक्षेच | Shrijainvadrimulvadroshetech(1885)

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Shrijainvadrimulvadroshetech(1885) by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) | ~ जयि यहाँ से गाड़ी में बैठ कर भाव नगर गये जहँ मन्द्रि जौ दो दिगम्बर आमनाय के हैं ॥ मूर्ति जौ बहुत मनोन्ञ चौथे काल की हैं। यहां से : । | 1 1 1 चल कर कोस क घोघावन्दर पहुंचे । यह । दिगम्बर आमनाय के हैं और एक सहस्र कूठ . चेत्याला हैं सो घातमड़ हैं ॥ मूर्ति जो महाम- : नोन्न और पुराचौन हैं ॥ टरशन कर के बड़ा आनन्द हवा ॥ इम जगह से नाव में बेठ कर . सूरत नगर पहुंचे इम शहर का हाल पहिले कह चुके हैं । यहा से रेल में सवार होकर एक : सौ सोलह मील बम्बई पहुंचे सो बस्बई का हाल ! भी पहिले लिखा गया है ॥ बम्ब़् से रेल में : बेठ कर मील साठ पूना नगर गये इस नगर में मन्द्रि जी दो दिगम्वर आसमनाय के हैं । दर्शन कर परम हष हुवा यहाँ से प्रचास मौल कुलड़ा बाड़ौ के शन पर पच रेल में वेट कर गये धे \ इम शान से गाड़ी किराये कर के कोस नगर समुद्र के किनारे है ॥ इस में मन्दि जो




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