केवलज्ञानप्रश्नचूड़ामणि | Kevalagyanaprashnachudamani
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषयसूची
` आलिङ्गित, अमिवूमितं बर दग प्रलाक्षर ` 8३
प्रस्तावना
जैन ज्योतिपकी महत्ता १७ | केवलज्ञानप्रदनचूडामणिका विपय परिचय ४९
जैन ज्योहिप साहित्यके भेद-प्रमेदोका दिखरशन १९ | पररन निकालनेकी विधि ५७
जैन पारी गणित २१ | प्रत्यका वहिरग रूप > ४८५ -
लैन रेखागणित--परिचय २३ | छामाम प्रल ४९
जैन वीजगणित २४ | चोरी गई वस्तुक प्राप्तिका प्रश्न ५०९,
जैन बिकोणमिति गणित २५ | अन्व-मन्दलोचनादि नक्षत्र सन्ता
प्रतिमा गणित और पचाग निर्माण गणित २६ वोधक् चक्र ५१
जन्मपत्र निर्माण गणित २८ | प्रवासी-आगमन सम्बन्धी प्रन ५१
चैन फलित ज्योतिप-होरा सहिता, मुहूर्त २९ | गभिणीकों पुत्र या कन्या प्राप्तिका प्रश्न ५१
सामुद्रिक शाह्त्र ३० | रोगी प्रश्न ` ५२
प्रशनशास्त्र और स्वप्नशास्त्र ३१ | मुष्टि प्रश्न ५९
निमित्त शास्त्र ३२ | मूक प्रश्न ५२
जैन प्रदनशास्तरका मूढाघार > मुकहूमा सम्वत प्रवल ५२
जैन फ्रानशास्त्रका विकासक्रम ३५ | ग्रन्थकार ५२
केवलज्ञानप्रदनचूडामणिका जैन प्रदनशास्त्रं केवलज्ञानप्ररनचूडामणिका रचना काल प
स्यान ४० | आत्म निवेदनं पु
ग्रन्थ
भक्षरोका वर्गविभाषन ५७ | उत्तर बौर मधर प्रलाक्षरोका फक ७४
्र्नफ़ल निकाछतेका मगणादि सिद्धान्त ५९ | उत्तरके नौ मेद भौर लक्षण ७५
इष्टका वनानेके नियम ६० | आलिङ्गित ( परवाह ) कामे करिये गये
विता घडी ए्काठं दनानेकी विधि ६१ प्रदनोके फठकों ज्ञात करनेकी विधि ७६
इष्कालपरसे लग बनानेकी विधि ६१ | ममिधूमित और दण (मध्याह्न एव गरा )
भष्लाक्षरोपरसे छम धनानेकी विधि ६२ कालीन ्रर्नोके फक लाततेकी विधि ७७
पांच वगेकरि योग और उनके फल ६४ | भदेगोत्तर ओौर उनका फल ७७
प्र्लकनानुसार फ़लनिर्पण ६५ | प्रश्नफल ज्ञात करनेके अनुभूत नियम ७८
` सुक प्रदाक्षर ओर उनका फल ६६ | योनिविभाग (प्रद्नोका विशेष फछ जाननेंके लिए) ८०
आरुढ रागि सज्ञा दारां भदन फल ६७ | योनि निकालनेकी विधि ८१
असवुभत शरयनाकषरं ˆ ‡ ` ' 7, ` ` ˆ , ६८ | पृच्छककी मन स्थित चिन्ताको श्नात
असयुम्त गौर अमित प्रश्नोके फठ ६९ करलेके नियम ८२
म्रदनलगन हारा विशेष फछ ७० | जीवयोनिके सेद ८३
जनमिहृत प्रदनाक्षर मौर उनका एक ७१ | द्विपदयोनि भौर देवयोनिके मेद ८४
अनिषातित प्रव्नालर भौर उनका फल ७२ | देवयोनि जाननेकी विधि ८५,
मनुष्ययोनिका निरुपण ८५
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