शांति के नूतन क्षितिज | Shanti Ke Nootan Kshitij
श्रेणी : इतिहास / History, विश्व / World
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
436
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)योरोप॑ पे प्रोत्साहन
गया और एेसी स्थायी आर्थिक स्थिति पदा करने के किए उसने प्रयत्न किया, «
जो सव के हित मे होगी ओर साथ ही गतिशीलता को-कायमे रख सकेगी ।
यद्यपि विदेशी मामलों मे उसके अनुभव स्वल्पं थे, फिरभी सामान्य -रूपः
से सभी राष्ट्रो के अपनी शासन-पद्धति के निर्णय के अधिकार की उसने सदव
र्षा की ह! उसने अनिच्छा से दो विद्व-युद्धो से भाग लिया था, परन्तु एक
बार फँस जाने पर विजय के लिए सवेस्व..्गा दिया । अव उसका देका दुसरे
महायुद्ध के बाद शक्ति और नेतृत्व की नवीन महानता प्राप्त कर रहा था।
फिर भी भविष्य मे अमरीका कौ इस महानता के व्यवहार के सम्बन्ध
मे भविष्यवाणी नही की जा सकती । प्रथमं विश्व-युद्ध के उपरान्त सतुलित
दशा प्राप्त करने की खोर्ज मे हमने पृथकत्व कौ मंहगी राष्ट्रीय नीति अपनायी।
योरोप की सीमाओ के पार हिटलर की दहाड और पु हाबेर पर मृत्यु बरसाने
वाली जापानी बमवर्पा ने क्या हमें यह आखिरी सबक नही सिखा दिया कि
इस घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध ससार में कोई भी बडी शक्ति इससे रहते हुए,
इससे बाहर नही हो सकती ? जिस प्रकार हमने विजय के यत्र गढे
थे, उसी प्रकार क्या हम युद्कालीन आर्थिक अस्तव्यस्तता को दुर करने के
लिए उद्यत हो सकते है ? क्या अमरीका अपने एतिहासिक पुथकत्व से हमेशा
के लिए धक्का मार कर जगा दिया गया हूँ ?
१९४५ मे विर्व की अधिकाश राजधानियो मे ये प्रन पूछे जाते थे
और अपने देश में भी इस विषय मे कम चिन्ता नहीं थी । परन्तु कुछ लोग
थे, जिन्होंने अनुमान छगा लिया था कि इन प्रदनो के उत्तरो की कितनी जल्दी
आवश्यकता पडेंगी । युद्धकालीन मैत्री की अनुकूलता ने उस खतरे की चेतावनी
नही दी, जो बहुत शीघ्य ही भोडर-नीजे नदी पक्ति के पार से प्रकट हो जायेगा ।
अमरीका के प्रिय अँग्रेज विन्स्टन चर्चिल, जो कुछ वर्ष पूवं बोलशेविज्म
की बाल-हृत्या कर देना चाहते थे, पहले व्यक्ति थे, जिन्होने स्तालिन को उस
समय सहायता का वचन दिया था, जब हिटलर की सेनाओ ने जून, १९४१
मे रूस पर आक्रमण किया । नाजी अधिकृत योरोप में प्रतिरोध करने वाले
आन्दोलनो मे ऐसे कम्यूनिस्ट नेताओ ने सवेदा भाग लिया जौर बहुधा
नेतृत्व किया, जिन्होने खतरनाक जीवन व्यतीत किया और जो वीरगति
को प्रप्त हुए 1 लाल सेनाओो की विजयो की कहानियाँ अटलाटिक जगत के
अखबारों में प्रति दिनं मुखपृष्ठो पर छपती थी ।
जिन शब्दो को पठकर आज अचरज होता है, उन्ही शब्दो दारा अनेकं असरीकी
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