समयसार प्रवचन भाग १ | Samayasar Pravachan Volume - I

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ प्रधान सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी ने श्री समग्रसारजी के विस्तृत विषै- चरनात्मक प्रवचनों के द्वारा जिनागमों का मर्म खोल मोक्षमागी को भननारेत करके वीतराग दन का पुतुरुद्रार विया है, मत्त के महामत्र पमान पमयसारजी कौ प्रत्येक गाथा को पूर्णतया शोधकर इन सष सूत्रा के विराट भर्थ को प्रंवचनरूप से प्रगट किया है। सभी ने जिनका 'अनुभव किया हो ऐसे परे परसो क अनेफ उदाह्यो दारा, श्रततिशय प्रमाचफ तथापि घुगप रेमे अनेक न्यायो द्वारा श्रौर अनेक यथोचित दृष्टान्तौ द्वारा कुन्दकुन्द भगवान के परममक्त श्रौ कानजी खामी ने सभ- यसारजी के अत्येत अर्थ-गमीर्‌ सुद सिद्धान्तो को अतिशय खट श्रौ मल त्रनाया है । जीव के कैसे मावर रहे तत्र॒ जीव-पद्रल क्रा खतप् परिणमन, तथा कैसे भाव रहें तत्र नत्रतलों का भूताथ सरूप ममफ थाया कहलाता है। कैसे-कैसे भाव रहें तब निरावलम््री पुरुषार्थ का आदर, सम्यदरीन, चारित्र, तप, वीर्ादिक की प्राप्ति हुई कहलाती है- झादि विषयों का मनुष्य के जीवन में आने वाले सेको प्रपणं के प्रमाण देकर ऐसा स्पष्टीकरण किया है कि मुमुन्ुओं को उन-उन विषयों का , स्पष्ट सम ज्ञान होकर अपूर्व गमीर अर्थ इषिगोचर हों आर वे बधमार्ग _ मैं मोक्तमाग की कल्पना को छोड़कर यथार्थ मोक्षमाग को मममतकर सम्यक पुरुषाधे में लीन होजाये। इसप्रकार श्री समयमार जी के मोक्तदायक भावों को अतिशय मधुर, नित्य-नत्रीन, वरैविध्यपूर्यी डाल्ली द्वारा प्रमावक भाषा में अत्यत स्पष्टरप से समकाका जगत का अपार उपकार किया ह! मयपर मे मरे इए अनमोल तव-सनों -का मूल्य जञानित्ों के हृदय में छुपा रही था उें उन्होंने जगत को वनलाया है! किसी परम मंगलयोंग में दिव्येध्वनि के नवनीतिस्वरुप श्री समयतार परमागम कौ स्वना हई । इत स्वना के पथात्‌ एकदनार वम मे जगत के महाभाग्योद्य से श्री समयसार जी के गहन तत्रों को विकसित करने दाली गवती श्रातमल्याति की स्वेना द ओर उमके उपरान्त एकदमार वर्ष पश्चात जगत में पुन. महापुर्योद््य से मदचुद्धिओं को भी सम्रयसार




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