सवत्सरी | savatsari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
370
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सेकसरी 1]
कतिक शुक्ला ७
उव तक तुम्हारा मालि श्रौर हदय भिदा श्रौर अता
को समान रूप में नहीं अहण करता, तमझना चाहिए कि
तुमने तब तक परमात्मा को पाहिचाना ही नहीं है ।
रः ., .) (
अर्षा श्रीर निन्दा चुनकर हर्ष श्रौर षिषाद की उत्पपि
वृद्धि के विकार के कारण होती है । बुधि का यह विकार
परमात्मा की आार्थना हे निर्दोष हो जाता है ।
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जिस दिन पृथ्वी पर प्रतित्रता का श्र्ित्त नही रहेगा,
उत्त दिन सूर्य, पृथ्वी और समुद्र अपनी-अपनी मर्यादः त्याग देगे ।
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जो पुरुष परधन और परी से सदव यलपूर्वक वक्ता
रहता है, उसका कोई कुद्ध मी नरह विगाद् सकता ।
श्र डर कैः शः
तुहारे तुंस्कारो को इुसत्कार दबा देते हैँ शौर तुम
गृफूलत में पढ़े रहते हो ! इढ़ता के साथ आपने सु्तत्कारों की
रक्षा करो तो आत्मा की बहुत 'उच्चति होंगी । 7... 7
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