श्री ईशादि अष्टोपनिषद | Sri Ishaadi Asthopanishad

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sri eishad asthopnishad sharapafakka  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तकवकार० ` ०.१३ अर्थात उसको प्रत्यक्‌ आत्मके जाननेकी इच्छा होती है ॥ सो उसी ( आत्माको ) प्रश्न उत्तरसय “किस करवांछित” इत्यादिक रूपसे यह अति केनउ- पनिषद्‌ दिखाती है । कोई एक दिष्य ज्मनिष्ठ बह्सश्रोत्निय गुरुके निकट विधि. पूथैक जाकर ओर भ्रलगात्मासे भिन्न अपने रक्षा कलतौको न देखता हुआ और अभय, निय, अचर वस्तुकी इच्छा करता हुआ “किंसकर वांतित > इत्यादिक रूप अर्थको पुता मया ॥ ऐसी कल्पना करते हैं ॥ शिष्यउवाच ॥ मूलमंत्र-केनेषितं पतति प्रेषित मनःकेन प्राणः भरभमः परेति युक्तः। केनेषितां वाचमिमा वदन्ति चश्छुः श्रोत्रं क उ देवो य॒न्ति ॥ १ ॥ अर्थ ॥ हे रुर ! किस कर वाँच्छित अत्‌ अभिभ्रायका विषय हुमा ओर किंसकाथ अर्थं भेजा हुजा मन अपने विषयके भति जाता है ओर किसकर मेजा हुआ प्रथम अर्थात सर्व ईद्धियौ विषे मुख्य भाण अपने व्यापारके प्रति जाता है; और किस कर वांच्छित इस शब्दरूप वाचाको खकिक जन कहते है; तैसे चक्षु ओर श्रोत्रको अपने अपने व्यापार विष कौन देव भजता. है ?.॥ 9 ॥ ऐसे पूछने हारे शिष्यकेताई गुरु वक्ष्यमाण उत्तरकों अथीत'“श्रोचस्य श्रो मनसो मनो, इत्यादिक उत्तर कहते हैं॥श्रीगुरुस्वाववाहे शिष्य | तुमने जो पूछा है॥ मनादिक करंणके समूहके कौन देव उनके उनके विषयक प्रति भेजनेहारा है? अथवा सो कैसे सेजता है ? तिसका उत्तर श्रवण कर ॥ जिस कर पुरुषदान्दको श्रवण, करता है, सो शब्दै श्रवणका साधन है अथौत झब्दका अकाशक जो श्रोन्न है, सो तिस श्रोन्का श्रोन्ररूप है ॥ फिर पूछा है कि चक्ष और श्रोत्रको कौन .देव भेजताहे १ सो तुमारे भश्चका उन्तर ऐसा देना व्वाहिये कि वहीदेव शरोवादिक ईडियोकोमी मेजता है ।। “सो देव श्रोत्रका श्रोजरूप हेः यह उत्तर मे रे मक्षके अनुसार नदी है १ इस शंकाका समाधान यह है॥ हे शिष्य | तिस देवको अन्य भ्रकारका कोडमी चिन्ह जाननेको भखछक्य है; याते इसी भकारका उन्तर संभवे है ॥ ताति हे शिष्य ! सो चैतन्यात्मा श्नोत्रका श्रोत्र है; तथा मनका मन है ओर जो चैतन्यात्मा वाक्यका वाक्य दै; सों चैतन्मात्मा भराणक्रा भाणरूय हे तथा चष्षुका चक्षु रूप है ; तात्य यह दै. कि, यह सवै श्रोत्र, मन, नेत्र वाक्यादिकः, उस चैतन्यात्माकी सत्ता रफूर्ति कर अपने -अपने कायै विषै मच होते हैं ॥ उस चैतन्यात्माकी सता स्मू्तिके विना यह से शरोतन मनादि-




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