अनासक्तियोग और गीताबोध | anasaktiyog aura geeta bodh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
348
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हि क|
स्तुति से खुशी श्रौर निन्दा से ग्लानि नदीं होती, जो
मोनघारी है, जिसे एकांतप्रिय है, स्थिरवुद्धि है, उद
भक्त है । यद्द भक्ति छासक्त स्री-पुरुपों के भीतर संभव
नहीं है ।
इस तरद हम देखते ठै कि ज्ञान प्राप्न करना,
भक्त दोना दी आत्मद्शन दै । आत्म-दर्शन उससे
भिन्न वस्तु नदीं है । जैतते एक रुपया देकर ज़द्दर भी
खरीदा जा सकता दे और 'झसत'भी लाया जा सकता
दै, वैसे दी यद् नदीं हो सकता कि कि ज्ञान या भक्ति
से बन्धन भी प्राप्त किया जा सके और मोक्ष भी 1
यहाँ तो साधन श्रौर साध्य विलंकुल एक नदीं तो
लगभग एक दी वस्तु है, साधन की पराकाष्ठा ही
मोक्ष दै । और गीता के मोक्ष का '्रर्थ है परम शान्ति।
किन्दु इस तरद के ज्ञान और भक्ति को कर्मफल-
त्याग की कसौटी पर चदृना ठदरा । लौक्किक कपना
में झुष्क परिडत भी ज्ञानी माना जाता है । उसे कोई
काम करने को न्दी होता । हाथ से लोटा तक उठाना
भी उसके लिए कर्मवन्धने दै ! यत्तशन्य जद्धँ ज्ञानी
-गिना जाय वषँ लोटा उठाने जैसी तुच्चं लौकिक
क्रिया को स्वान दी केसे मिल सकता हे ?
लौकिक करपना में भक्त से मदलव दै वाह्या-
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