नवधा भक्ति | navdha bhakti

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navdha  bhakti  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रवण अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वान्येभ्य उपासतेः। तेऽपि चातितरन्त्येव सत्यु श्रुतिपरायणाः ॥ ( १३।२५ ) “दूसरे जो मन्दवुद्धिवाले पुरुप हैं वे त्वयं इस प्रकार न जानते इए दूसरंसे अर्थात्‌ तत्के जाननेवाडे पुस्पेसि घुनकर ही उपासना करते हैं अर्थात्‌ उन पुरुपोंके कहनेके अनुसार ही श्रद्धासहित तत्पर इए सायन कते हैँ ओर बे घुननेके परायण हुए पुर भी मृत्युरूप संतारतागरको निःसन्देह तर जाते हैं ।' नारदर्जीने भी श्रीमद्धागवतमाह्दात्म्यमं. सनकादिके प्रति कहा ह-- श्रवणं सर्वघरमेभ्यो वरं मन्ये तपोघनाः। वैकुण्डस्थो यतः कृष्णः श्रवणाद्यस्य लभ्यते ॥ (६1.७७) टे तथोधनो 1 म भगवानके गुणाजुवादेकि श्रवणको सव घर्मोति श्रेष्ठ मानता हूँ क्योंकि भगवानके गुणानुवाद सुननेसे चेकुण्ठस्थित मगवानकी प्राप्ति हों जाती हैं ।' . केवल श्रवणभक्तिसे भगवान्‌की प्राप्ति हो जाती है | इसके लिये शाल्ोमिं वहृत-से प्रमाण भी मिच्ते है तथा इतिहास ओर पुरार्णेमि ` वहुत-से उदाहरण मो मिच्ते हँ । जैसे राजा परीक्षित मागवतको सुननेसे ही परमपदको प्राप्त हो गये । श्रीमद्वागततमाह्यस्मयर्मे छिखा है-- ड असारे. संसरे विपयविपसझ्ञालघधियः क्षणार्धं क्षेमार्थं पिवत शुकग्थातुरुघाम्‌ 1 १५




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