गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र | Geeta Rahasya Athava Karmayogashastra

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Geeta Rahasya Athava Karmayogashastra by माधवरावजी सप्रे - Madhawrajji Spray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना । , . - १७ भध्याय के सारम्म मै पुरातन यीकाकारो के भभिप्रायौ का उदेव 8; इस उल्लेख से शात होता है कि गीता पर पहले कमैयोगप्रधान यकाद रही होंगी । किन्तु इस समय ये टीकाएँ; उपलब्ध नहीं है; अतएव यह कहने मे कोई क्षति नहीं कि, गीता का कर्मयोग-प्रधान सौर तुलनात्मक यदद पहला ही विवेचन है । इसमें कुछ को के अर्थ, उन अथौ से भिन्न हैं, कि जो जानकरू की दीकार्मों में पाये जाते हैं; एवं ऐसे अनेक विषय भी बताये गये हू कि जो अब तक कौ प्रकत टीका मे विसार सित कीं भी नही थे । इन चिपयों को और इनकी उपपत्तियों को यद्यपि इसने संक्षेप में ही यतया ६, तथापि यथाद्य सुस्पष्ट सौर युध रीति से, बति के उद्योग में दमने कोई वात उठा नहीं रखी है । ऐसा करने में यद्यपि कहीं कहीं दिचक्ति दो गई है, तो भी हमने उसकी कोई परवा नहीं की; और जिन श्चन्दौ के मयै अब तक भाषा में प्रचलित नहीं हो पये हैं, उनके पर्याय बब्द उनके साथ ही साथ अनेक स्थलों पर दे दिये हैं । इसके भति- रिक्त; इत्र विषय के प्रमुख प्रमुख सिद्धान्त सारं रूम से स्थान-स्थान पर, उप- पादन से प्रथक्‌ कर, दिखला दिये गये हैं। फिर मी शाख्रीय और गहन विष्यो का विचार, थोडे शब्द मे, करना सदैव कठिन है जौर हस विषय की भाषा भी मी श्यिर नहीं हो पाई है । अतः दम जानते हैं कि भ्रम ते, दृष्टिदोष से, अथवा अन्यान्य -कार्णौ से. हमारे इस नये र्ग के विवेचन में कठि- नाई, दुर्बोवता, अपूर्णता और अन्य कोई दोष रह गये गे 1 परन्तु मगव- ट्वौत्ता पाठकों से कुछ अपरिचित नहीं दै--वदद हिन्दुओं के लिये एकदम नई वस्तु नहीं दै कि जिसे उन्होंने कमी देखा-सुना न हो । ऐसे बहुतरे ोग हैं; जो नित्य नियम से भगवद्वीता का पाठ किया करते हैं, और ऐसे पुरुष भी थोड़े नहीं हैं कि जिन्होंने इसका शास्रीयद्रया अध्ययन किया है अथवा करेंगे । ऐसे अधिकारी पुष से हमारी एक पाथना है कि जव उनके हाथ यं यष्ट अन्य पहुँचे और यदि उन्हें इस प्रकार के कुछ देर मिल जाये; तो वे यृूपा कर पे उनकी सूचना दे दें। ऐसा होने से हम उनका विचार करगे, सौर यदि द्वितीय संस्करण कै प्रकादित करने फा अवसर आया ते उमे यथायोग्य संशोधन कर दिया जिगा । सम्भव दै, कुछ लोग समझें. कि, दमाय कोई विशेष सम्पदाय है और उसी सम्प्रदाय की सिद्धि के लिये इस गीता का; पक प्रकार का; विशेष अर्थ कर रहे हैं। इसलिये यहाँ इतना कट देना आवश्यक है करि, यह गीतारदस्य अन्थ किसी मी व्यक्तिविशेष अथवा सम्प्रदाय के उद्देश से छिखा नरी गया है! दमारी इद्धि के अनुसार गीर. ख




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