भक्तमाल का सुचीपत्र | Bhaktmal ka suchipatra

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Bhaktmal ka suchipatra by ऋषिगोपाल rishigopal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भक्तमाल । | ११ # अरमाणं स बाहर हे आर उनमें ओर भगवत्‌ में कु भिन्नता नही ॥ र देवनागरी म माषान्तर होने का कारण ॥ अब यह पाथा भक्रमाल कल्पटुम जिसप्रकार देवनागरी मे भाषान्तर' इं सो लिखाजाता हे इसका वृत्तान्त यह है कि प्रथम मेरे वित्त को चह चाहे हर क भक्रिमागे के सिद्धान्त के वचन भागवत व गीताव नारदपरात्र व गापालतापिना इत्यादिथन्थो का समह्‌ करके पोथी वनाव सा चहुतस शलाक भागवत इत्यादि के व भक्ति के पांचों रसों की सामा अथात्‌ विभाव व अनुभाव व साछिक व उयभिचाशै व स्थायी भाव इत्यादि के संग्रह करिके एकत्र किये व इस परिश्रम में प्रचर्त रहे तब ` तक सवत्‌ उन्नाससो सत्रह १६१७ श्रावण के शक्कपक्ष में -पड़रोना घाम म्रजो श्यामधाम मे मस्य भगवद्धाम है तहां श्रीराधाराजवल्लमलालजी ठाकुर हिंडाला सल रहे थे उसी समय उमेदभारती नामे सन्यासी रहने वाले उवालमुखी के जो कोटकां गड के पास हे भक्रमालप्रदीपन नाम पोथी जां पञ्चाचदेश मं भम्बाले शुर फे रहनेषाले लाना तलसीरामने जो पारसी मृ तञ्ञमा करिके भक्रमालप्रदीपन नाम ख्यात कियाहे तिस्को लिये टये आये उनके सत्कार व प्रेमभाव से पोथी हम ईश्वरीप्रतापराय को मिलती जव सव अवलोकन करि गये तो ऐसा हष व आनन्द चित्त को प्राप्त हुआ कि वर्णन नहीं होसक्ा साक्षात्‌ मगवत्‌ प्रेरणा करके मनो- वान्दित पदाथे को प्राप्त कर दिया व लाला तुलसीरामे के प्रेम व परिश्रम की.चड़ाइं सहखों मुख से नहीं होसक्रों कुछ काल उसके श्रवश व अव्‌- लोकन का सख लिया तब मन में यह अभिलाषा हुई कि इस पोधी को देवनागरी में भापषान्तर अर्थात्‌ तजमा करें कि जो पारसी नहीं पढ़े हैं उन सच भगवद्धक्रों को झानन्ददायक हाय सो थोड़ा २ लिखते २ ता सरे ष संवत्‌ उच्ीससौ तेस १६२३ अधिक ज्येप्शुक् पूर्णिमा को श्रीगरुस्वामी व भगवद्धक्नो की कृपा से यह भक्रमाकल्ल नमि मन्थसपरणव समाप्त दुआ व चोवीस निष्टा से सत्रह नि्टातक तो स्या का स्या क्रतपूचक लिखागया परन्त शअरटारहवीं नि से भक्तिरसके तारतस्यसेक्रमन ` लगाकर इस न्थ म लिला हे को$ पारसांवाल भ्न्थ पढ़नवाल हमारा भत चक्‌ न समर हममे विचार से यह क्रम इस भकार स लगाया ह कि पथम धर्मनिष्ठ जिसमे सात उपासको का वणन आर दूतस मागः वतधमध्रचारकनिष्ां तिम बीस भक्तो का वणन; तासरा साधुलततीयटा




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