शंकरदिग्विजय भासा | Shankardigvijaya Bhasha
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). शङ्करदिग्विजय भाषा ।' १३
दष्ट संग दूषित मन जानी ।धिगधिगमेर्हिबोल्योबहवानी॥
पति गिरा सुनि जैनन कहेड । मतनिरय्मवही नहिं मयऊ ॥
मन्त्र मणी ओषध सो गजा । तनको कलुनरिंहोयन्धकाजा ॥
जब प्रत्यक्ष प्रमाण न मानी । तब सकोप बोल्यो चप बानी ॥
दो° जो धृषठौ मै दहन सो उतर न आयो जादि ।
उपल यन्त्रमो घालिके वधकरिहीं मे ताहि ॥
ऐसी कठिन भ्रतिज्ञा कीन्हा । एकसर्पं घमां धरि दीन्दा ॥
पुनिमुखवांघिसभामहँ लायो । सबहिनकोवहकलशदिखायो।!
हिजगण हे जेन धनेरे। जे तुम जुरे सभा महैँ मेरे ॥
` वरणौ कोनिवस्तु घट भीतर । बोले काल्हि देंगे उत्तर ॥
यदहिविधिन्ेपकरँ विनयसुनां । गये जेन खरु दविज समुद्रं ॥
करन लगे हिजवर तप गाद । कंठ ्रमाण वारि मर्ह ठाढ़े ॥
कमलसमानतरणि्मनुरागी । मजनकीन्हनिशिमरिसुखत्यागीप।
भक्ति विवश स॒विता तुका । विप्रन उत्तर दीन्ह बता ॥
घट निश्वयकरि तथा जेनसब । छप समीप गवने दूनहूँ तब ॥
जेनन प्रथम कद्यो यह उत्तर । है मुजग यहि घट के भीतर ॥
जनभशित वाणी सुनि दिजवर। राजक दीन्हो यह: उत्तर ॥
शेष शयन .शायी भगवता । कलश विराजे प्रमु श्रीकंता ॥
भूसुर वचन सुनो जब शजा । श्रीहतमुखयहिभोतिविराजा ॥
दो० सुख सरोवर निकट जिमि सारस वदन मलीन । -
तैसे सेपकर मुखभयो तेदिश्मवसर छविहीन ॥ क
राजहि दुखित देखि नभवानी । होत मदं अति्ारनद सानीं ॥
महाराज कह संशय नाहीं । जो कषु विर कँ तुमपाहीं ॥
हिजवर वचन सत्यकरि लेखो । घटसुखखरोलि सभामहंदेखो ॥
उरगत सब संशय परिहरहू । अपनि भतिज्ञा पूरण करट ॥
सुनि नभगिरा दीख घटंराजा । श्रीमधुसदन ख्य विराजा ॥
दमि हरि मूरति तै रप पाद । जिमिसुरपतिलहिसुधासुद्दाई॥
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