शंकरदिग्विजय भासा | Shankardigvijaya Bhasha

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Shankardigvijaya Bhasha by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. शङ्करदिग्विजय भाषा ।' १३ दष्ट संग दूषित मन जानी ।धिगधिगमेर्हिबोल्योबहवानी॥ पति गिरा सुनि जैनन कहेड । मतनिरय्मवही नहिं मयऊ ॥ मन्त्र मणी ओषध सो गजा । तनको कलुनरिंहोयन्धकाजा ॥ जब प्रत्यक्ष प्रमाण न मानी । तब सकोप बोल्यो चप बानी ॥ दो° जो धृषठौ मै दहन सो उतर न आयो जादि । उपल यन्त्रमो घालिके वधकरिहीं मे ताहि ॥ ऐसी कठिन भ्रतिज्ञा कीन्हा । एकसर्पं घमां धरि दीन्दा ॥ पुनिमुखवांघिसभामहँ लायो । सबहिनकोवहकलशदिखायो।! हिजगण हे जेन धनेरे। जे तुम जुरे सभा महैँ मेरे ॥ ` वरणौ कोनिवस्तु घट भीतर । बोले काल्हि देंगे उत्तर ॥ यदहिविधिन्ेपकरँ विनयसुनां । गये जेन खरु दविज समुद्रं ॥ करन लगे हिजवर तप गाद । कंठ ्रमाण वारि मर्ह ठाढ़े ॥ कमलसमानतरणि्मनुरागी । मजनकीन्हनिशिमरिसुखत्यागीप। भक्ति विवश स॒विता तुका । विप्रन उत्तर दीन्ह बता ॥ घट निश्वयकरि तथा जेनसब । छप समीप गवने दूनहूँ तब ॥ जेनन प्रथम कद्यो यह उत्तर । है मुजग यहि घट के भीतर ॥ जनभशित वाणी सुनि दिजवर। राजक दीन्हो यह: उत्तर ॥ शेष शयन .शायी भगवता । कलश विराजे प्रमु श्रीकंता ॥ भूसुर वचन सुनो जब शजा । श्रीहतमुखयहिभोतिविराजा ॥ दो० सुख सरोवर निकट जिमि सारस वदन मलीन । - तैसे सेपकर मुखभयो तेदिश्मवसर छविहीन ॥ क राजहि दुखित देखि नभवानी । होत मदं अति्ारनद सानीं ॥ महाराज कह संशय नाहीं । जो कषु विर कँ तुमपाहीं ॥ हिजवर वचन सत्यकरि लेखो । घटसुखखरोलि सभामहंदेखो ॥ उरगत सब संशय परिहरहू । अपनि भतिज्ञा पूरण करट ॥ सुनि नभगिरा दीख घटंराजा । श्रीमधुसदन ख्य विराजा ॥ दमि हरि मूरति तै रप पाद । जिमिसुरपतिलहिसुधासुद्दाई॥




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